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तृतीयप्रकाश.
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हस्थ पण शुरूपणाने प्राप्त थाय डे अर्थात् पापोथकी निर्मुक्त थाय बे. arrant या प्रतिमानुं स्वरूप कहे बे. शंकादिक दोषरहित, केवल शांत व्यवस्थामां रहीने, जय, लोज, लता आदिकधी रहित थइने, एक मास सुधि सम्यग्दर्शनने जे पालतुं, ते पहेली प्रतिमा जाणवी. वे मासुधि अखंडित रीतें, पूर्वे कदेली प्रतिमाना अनुष्ठान सहित वारे व्रतने जे पालवां, ते बीजी प्रतिमा जावी.
त्रण मास सुधि वन्ने वखत प्रमादी रहीने, पूर्वे कहेली प्रतिमाना अनुष्ठान सहित जे सामायिकमां रहेतुं, ते त्रीजी प्रतिमा जाणवी.
चार मास सुधि चार पर्वोमां, पूर्वे कदेली प्रतिमाना अनुष्ठान सहितं, खंडित रीतें, पौषध व्रतने जे पालकुं, ते चोथी प्रतिमा जाणवी.
पांच मासो सुधि चतुःपर्वीमां, घरमां, अथवा घरना द्वारमां अथवा चोटामां, परिषद ने उपसर्ग श्रादिकषी निष्कंप थश्ने, श्रागल कहेली प्रतिमाना अनुष्ठानपूर्वक आखी रात्रिसुधि कायोत्सर्ग ध्यानमां रहे, ते पांचमी प्रतिमा जाणवी.
उपर कहेली प्रतिमाना अनुष्ठानपूर्वक व मास सहित ब्रह्मचर्य व्रत - मां रहे ते बडी प्रतिमा जाणवी.
सात मास सुधि सचित्त आहारनो जे त्याग करवो ते सातमी प्रतिमा जाणवी.
मास सुधि पोते बिलकुल प्रारंभ नही करवो ते आठमी प्रतिमा जाणवी.
नव मास सुधि चाकरो पासे पण श्रारंभ नहीं कराववो ए नवमी प्रतिमा जाणवी.
दश माससुधि पोताने माटे बनावेलो आहार नहीं जमवो ए दशमी प्रतिमा जाणवी.
ग्यार मासो सुधि स्त्रीयादिकना संगने तजीने, रजोहरण थादिकथी मुनिनो वेष धारण करीने, तथा केशोनो लोच करीने, पोताना गोत्री दिकमां रहने, “प्रतिमाने प्राप्त थयेला एवा आश्रमणो पासकने जिका आपो ? एम बोलीने, धर्मलान शब्दनां उच्चारण विना, उत्तम साधुनी पेठे जे श्राचरयुं, ते ग्यारमी प्रतिमा जाणवी.
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