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________________ एय तृतीयप्रकाश. सिद्ध थशे; तथा वर्तमान कालमा जे वर्ते , एवा सघला सिद्धोने हुँ त्रिवि त्रिविधं वांउंडं. पड़ी उठीने स्थापनाईत्ने वांदवामाटे जिनमुखायें करीने “अरिहंत चेश्याणं" इत्यादि सूत्रजण. “ अरिहंत चेश्याणं " केतां अरिहंत प्र. तिमाने निमित्तें “करेमि काउस्सग्गं" केता हुँ कायाने अन्य व्यापारथी रोकुंडं. शामाटे ? तो के "वंदण वत्तियाये" केतां अरिहंत चैत्यने वंदन करवामाटे, तथा "पुश्रणवत्तियाये” केतां गंधमादय आदिकथी पूजा करवामाटे, तथा "सकारवत्तियाये” केतां उत्तम वस्त्र बालरण श्रादिकथी सत्कार करवामाटे,तथा “समाणवत्तियाये” केतां स्तुति आदिकथी गुणोनी उन्नति करवामाटे, तथा “बोहि लाज वत्तियाये” केतां अरिहंत प्रजुयें प्रणीत एवा धर्मनी प्राप्ति थवामाटे. तथा “निरुवसग्ग वत्तियाये” जन्म जरा दिकना उपसर्गरहित एवो जे मोदा, तेने माटे, वहीं कोई शंका करे के, साधु श्रने श्रावकने बोधि लाज तो बेज, त्यारे शामाटे तेनी तेने प्रार्थना करवी जोश्य? तेने माटे कहे ने के, को क्लिष्ट एवा कोना उदयथी, ते बोधिलाल जो पागे खसी जाय, तो तेने माटे जन्मांतरमां तेनी जे प्रार्थना करवी ते कंश अयुक्त नथी. हवे श्रा कायोत्सर्ग करे, तो पण जो तेमां श्रद्धा न होय, तो ते इलित अर्थ देनारो थतो नथी; तेने माटे हवे कहे , “ सकाये मेहाएधिश्ये धारणाये अणुपेहाये वजमाणीये गमि काउसगं" श्रझा केहेतां मिथ्यात्व मोहनीय कर्मनी क्षयोपशमथकी उत्पन्न थएली, तथा उदकप्रसादक मणिनी पेठे चित्तना प्रसादने उत्पन्न करनारी एवी श्रझायें करीने, तथा "मेधया" एटले जडपणांये करीने रहित, तथा "धृत्या" केहेतां मनना समाधिपणाथी, एटले रागद्वेष विना, तथा "धारणया” केहेतां अरिहंत प्रजुना गुणोने नहीं विस्मरवावडे करीने, तथा " अनुप्रेक्या” केहेतां वारंवार अरिहंत प्रजुना गुणोना स्मरणवडे करीने, तथा “ वर्धमानया" केदेतां वृद्धि पामती, एवी श्रद्धा आदिकें करीने, “वर्धमानया" ए विशेषण अकादिक सर्व पदोने जोडी लेवू. वली श्रहीं अकादिकनो अनुक्रमें उपन्यास करेलो , एटले श्रका होय तो मेधा, मेधा होय तो
SR No.011619
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1899
Total Pages493
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size25 MB
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