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योगशास्त्र. सें वर्णवेला, अनुना धैर्यने नजरे जोश, तथा प्रजुने पोताना मूलरूपें नमस्कार करी, ते देव पोताने स्थानकें गयो. एक दहाडे मातपिताए, प्रजुने जणाववा मुकवानो महोत्सव करवाथी ॐ विचाखु के, सर्वज्ञने शुं शिष्यपणुं !!! एम विचारि ते त्यां आव्यो; पड़ी में प्रजुने उपाध्यायने आसने वेसाड्या, तथा तेनी प्रार्थनाथी प्रजुयें व्याकरण शास्त्र वोली आप्यु, श्रा व्याकरण प्रजुए इंजने कही बताव्यु, तेथी उपाध्यायें लोकमां तेने " ऐं व्याकरण " ना नामथी प्रसिद्ध कलु. पड़ी दीदा लेवामां उत्कंठित एवा, ते प्रज्जु केटलीक मेहेनतें मातपिताना उपरोधथी, अगवीश वर्ष गृहवासमा रह्या.पनी ज्यारे मात पिता काल करीने देवलोकमां गयां, त्यारे प्रजुए राज्य संपत्तिथी निरीह थश्ने दीक्षा लेवानी श्छा करी, त्यारे नंदिवर्धन नामना मोटा नाश्य, प्रजुने कर्वा के, हे जगवन् ! तुं “ दाऊयापर खूण नाख्य नहीं" एम गदगद कंठे कहीने प्रजुने रोकी राख्या. पडी प्रजु जावयति थश्ने, नाना प्रकारनां श्रानूषणोथी नूषित थया थका चित्रशालामां काउसग ध्याने रह्या. एवी रीते प्रजुए शुद्ध आहारपाणीथी, त्यां केटलीक मेहेनतें एक वर्ष व्यतीत कमु. पनी लोकांतिक देवोए तीर्थ प्रवर्त्ताववायूँ कहेवाश्री, प्रच, मागणो प्रत्ये शछित दान देवा लाग्या. एवी रीतें बीजा एक वर्ष सुधिमा पृथ्वीने करज रहित करीने, प्रजुए तृणनी पेठे राज्यलक्ष्मीनो त्याग कस्यो, पनी सघला निकायना देवोए प्रजुना निकलवानो महोत्सव कस्यो, तथा प्रजुए पण हजार देवोए उपाडेली चंपना नामें पालखीमां बेशीनें, ज्ञातखंड नामें वनमा जश, सघला सावध व्यापारनो त्याग करी दिवसना चोथे पहोरें दीक्षा लीधी. तेज वखते जगतना मनोनावने जणावनालं, मनःपर्यव नामनुं चोथु ज्ञान प्रजुने उत्पन्न थयु. पनी त्यांथी संध्या वखते कार गामपासें जई, प्रजुए मेरुनी पेठे निष्कंप रही कायोत्सर्ग कस्खो. त्यां पोताना आत्माना वैरी एवा गोवालीआए, रात्रिये, कारणविना क्रोध करीने प्रजुने उपअव कस्यो. पनी इंसें अवधिज्ञानथी ते उपञ्व जाणीने, तेनो नाश कस्या, तथा वली तेणें प्रजुने प्रार्थना करी के, हे जगवन् ! आपने वार वर्षों सुधी उपसों थशे, माटे तेजेनो नाश करवाने हुं आपनी पासे रहेवा बुं बुं. त्यारे प्रनु पण समाधि पा