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योगशास्त्र. हस्थे अमुक नियमित वा चोकस दरवाजावायूँ घर राखवू. एवं घर, शत्यादिक दोष रहित, तथा घणी धोखड, प्रवाल, डान, वर्ण, गंध, माटी, खादिष्ट पाणी निधान आदिक गुण दोषनी परीक्षापूर्वक, स्वप्न, शकुन श्रादिक जोश्ने जे स्थानक होय, तेवा स्थानकें करवं. तेम अति गुप्त तथा अति प्रकट घर न करवू कारणके, अति प्रगट स्थानके घर करवायी आसपास श्राधार न होवाथी तेमां चोरादिकना प्रवेशनो नय रहे, तेम अतिगुप्त स्थानकें घर करवाथी, अग्नि थादिकना उपव वखते तेमांथी जवू श्राव, पण मुश्केल पडे. वली पडोशी पण शीलादिक गुणोवाला शोधवा, कारणके, कुराचारि पाडोशीनश्री तेऊनां वचन आदिक सांजलवाथी, तथा तेउनी चेष्टाउँ जोवाथी, पोताना गुणोनो नाश थाय . वली था लोकमां तथा परलोकमां हितकारी ने प्रवृत्ति जेनी, एवा सदाचारि5 साथे संग करनार, पण खल, उगारा, विट जार वा व्यभिचारी जांड, नटादिक साथे संग नहीं करनार, ते सत्संगी कहेवाय. मातपिताने पूजनार, एटले तेमने त्रण काल प्रणाम करनार, तथा तेजेने परलोकमां हितकारी, एवी क्रियाउँमा जोडनार, वली सघला कार्योमा तेमनी श्राज्ञाप्रमाणे चालनार, माणस मात पिताने पूजनार कदेवाय. कारण के, मनुयें पण कयु डे के, एक आचार्य दश उपाध्यायनी बरोबर बे, पिता सो आचार्यनी बरोबर , तथा माता, पिताथी हजार गणी पूजनीय . वली उपजववालां स्थानकनें तजनार; एटले ज्यां स्वचक्र, परचक्र वैरी, उकाल, तथा मरकीनो जय होय, तेवां स्थानो गाम नगरादिकने तजनार, कारण के जो तेवां स्थानने न तजे, तो पूर्व उपार्जन करेला धर्म, अर्थ तथा कामनो विनाश थाय बे, श्रने नवा न मेलवी शकवाथी बन्ने जवो बगडे . तेम निंद्य कार्योंमां न प्रवर्तनारो, एटले देश, जाति, तथा कु. लनी अपेक्षाए निंद्य काम नहि करनारो. जेमके देशनी अपेक्षायें सौवीर देशमा खेती, श्रने लाट देशमा मद्यसंधान, जातिनी अपेक्षाये ब्राह्मण थश्ने मद्यपान करवू, तथा तल, लूणश्रादिक वेंचर्बु तथा फलनी श्रपेक्षाए चौबुक्यादि सोलंकी विगेरे वंशमां उत्पन्न यश् मद्यपान करवं,२त्यादिक निंद्यकार्यों में, तेमां नहीं प्रवर्तनारो, कारण के निंद्य काम करनारनुं बाकीतुं पण धर्मकार्य हांसीने पात्र थाय बे. हवे श्रायोचित व्यय