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आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.३ सू. ९ अप्कायसचित्तता
अप्कायस्य लक्षणद्वारम्ननूदकं सचित्तमस्तीत्यत्र किं प्रमाणम् ? उच्यते-आपः सचित्ताः, शस्त्रानुपहतवे सति द्रवखात्, हस्तिशरीरोपादानभूतकललवत् । वस्रवणादौ दोषवारणाय शस्त्रानुपहतत्वविशेषणोपादानम् । कललशब्दग्रहणेन सप्तदिवसमाप्रवर्तिनो ग्रहणम्, ततः परमष्टमदिवसादौ तदेवार्बुदाद्यवस्थामापद्यते ।
किञ्च-आपः सजीवाः, अनुपहतद्रवत्वात्, अण्डकमध्यस्थितकललवत् ।
किञ्च-आपो जीवशरीराणि, छेद्यत्वात, भेषत्वात्, दृश्यत्वात्, करचरणादिसमुदायवत् ।
अप्कायका लक्षणद्वार शंका--जल सचित्त है, इस विषय में क्या प्रमाण है ?
समाधान--जल सचित्त है, क्यों कि शस्त्र के उपघात के विना ही वह द्रव (तरल) है, जैसे-हाथी के शरीर का उपादान कलल । यहाँ मूत्र आदि से व्यभिचार हटाने के लिए 'शस्त्र के उपघात के विना' यह विशेषण लगाया गया है। 'कलल' शब्द के ग्रहण करने से सिर्फ सात दिन का गर्भाशयस्थित शुक्रशोणितमिश्रित द्रवपदार्थ लेना चाहिए । आठवें दिन से उककी अर्बुद आदि अवस्थाएं हो जाती हैं-अर्थात् वह गाढा होने लगता है।
और भी-जल सजीव है, क्यों कि वह अनुपहत द्रव है, जैसे अंडे का रस ।
और भी-जल, जीव का शरीर है, क्यों कि उसका छेदन-भेदन किया जाता है और दृश्य है, हाथ पग आदि के समूह की तरह ।
सायनुसारश -४५-पाणी सथित छे ये विषयमा शुं प्रमाण छ
સમાધાન -જલ સચિત્ત છે. કેમકે શસ્ત્રના ઉપઘાત વિનાજ તે તરલ છે. જેવી રીતે હાથીના શરીરનું ઉપાદાન “કલલ”. અહિં મૂત્ર આદિથી વ્યભિચાર હઠાવવા माटे शखन पधात विना' से विशेष गायुछे. “Bed." शहना ग्रहण ४२વાથી માત્ર સાત દિવસને ગર્ભાશયમાં રહેલો શુકશોણિત-મિશ્રિત દ્રવપદાર્થ સમજ જોઈએ. આઠમા દિવસથી તેની અન્દ આદિ અવસ્થાઓ થઈ જાય છે. અર્થાત તે કઠણ થવા લાગે છે.
બીજું પણ–જલ સજીવ છે, કેમકે તે અનુપહત કવ છે, જેમકે ઈંડાને રસ.
બીજું પણ જલ-જવ–શરીર છે. કેમકે–તેનું છેદન–ભેદન કરી શકાય છે અને દેશ્ય છે; હાથ-પગ આદિના સમૂહ પ્રમાણે.