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आचाराङ्गसूत्रे
शरीरान्तरप्राप्तिस्थाने यान् पुद्गलान् गृह्णाति तान् बाह्यपुद्गलान् कार्मणेन सह तप्तायः पिण्डजलग्रहणवत् मिश्रयति यस्मिन् स्थाने, तत् स्थानं योनिः । प्रादुर्भा मात्रं शरीरिणां जन्म, इति योनि - जन्मनोर्भेदः । सा नवविधा | ( १ ) सचित्ता, (२) अचित्ता, (३) सचित्ताचित्ता, (४) शीता, (५) उष्णा, (६) शीतोष्णा, (७) संवृता, (८) विवृता, (९) संवृतविवृता । उक्तश्च -
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" कइविहाणं भंते! जोणी पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविद्या जोणी पण्णत्ता, तंजदा-सीया जोणी, उसिणा जोणी, सीआसिणा जोणी । तिविहा जोणी पण्णत्ता, तंजा - सचिता जोणी, अचित्ता जोणी, मीसिया जोणी ।
ग्रहण करने के लिए नवीन शरीर की प्राप्ति के स्थान पर जिन वाह्य करता है, उन्हें जिस जगह पर कार्मगशरीर के साथ तपे लोहे के समान एकमेक करता है, वह स्थान योनि कहलाता है । जीवों का प्रादुर्भाव होना जन्म है | यह योनि और जन्म में अन्तर है । जन्म का आधार योनि- है, अतः योनि और जन्म में आधाराधेयभाव - सम्वन्ध है । योनि के नौ भेद हैं: - (१) सचित्त, (२) अचित्त, (३) संचितांचित्त, (४) शीत, (५) उष्ण, (६) शीतोष्ण, (७) संवृत, (८) विवृत और ( ९ ) संवृत - विवृत । कहा भी है
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पुद्गलों को ग्रहण
गोले और जलके
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“भगवन् ! योनि कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार की योनि कही गई है। वह इस प्रकार - गीतयोनि, उष्णयोनि और शीतोष्णयोनि । तथा तीन प्रकार की योनि कही है । वह इस प्रकार - सचित्तयोनि, अचित्तयोनी और मिश्रयोनि ।
કરવા માટે નવીન શરીરની પ્રાપ્તિના સ્થાન પર જે ખાદ્ય પુદ્ગલાને ગ્રહણ કરે છે. તેને જે જગ્યા પુર કામણુશરીરની સાથે તપેલા લેાઢાના ગાળા અને જલની સમાન એકમેક કરે છે તે સ્થાન ચેાનિ કહેવાય છે. જીવાને પ્રાદુર્ભાવ થવા તે જન્મ છે. ચેાતિ અને જન્મમાં એજ અન્તર છે, જન્મના આધાર ચેતિ છે, તેથી યાનિ અને ४न्भभां आधार-आधेय लाव संबंध है, योनिना नव लेह :- (१) सथित्त (२) सत्ति ( 3 ) सयित्तायित (४) शीत (4) उष्णु (६) शीतोष्णु (७) संवृत (८) विवृत भने (6) संवृत-विवृत या छे
“भगवन् । योनि डेंटला अारनी उही छे ? गौतम ! ऋशु प्रहारनी योनि उही छे. ते मा प्रभाो छे—शीतयोनि, उष्णुयोनि, भने शीतोष्णुयोनि तथा त्रयु प्रहारनी योनि કહી છે. તે આ પ્રમાણે છે—સચિન્તયેાનિ, અચિત્તયાનિ અને મિશ્રર્યેાનિ. ફી પણ ત્રણુ