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________________ . .. ... श्री महावीर जैन विद्यालय-अंजलि बंबई शहरमें युनिवर्सिटी बनानेकी शक्ति रखते हैं ! यदि इनके साथ और भी दानवीर सेठ बाबू पन्नालाल पूनमचंद, सेठ शांतिदास आसकरण, सेठ माणेकलाल चूनीलाल, सेठ कांतिलाल ईश्वरलाल आदि मिल जावें फिर तो कहना ही क्या ? सोना और सुगंध वाला हिसाब हो जावे !! इसमें शक नहीं आजकलके समयानुसार वर्तमान परिस्थितिको ध्यानमें लेते हुए जैन संस्कृतिको कायम रखनेके लिए जैन युनिवर्सिटीकी अत्यावश्यकता है ! क्योंकि नीचेके क्लासोंमें जबतक विद्यार्थी होते हैं मातापिताके संस्कारोंके कारण थोडीसी भी धार्मिक भावना उन विद्यार्थियों में दिखलाई देती है, परंतु जब वह विद्यार्थी ऊपरके क्लासों में कोलेज आदि स्थलों में जाते हैं, मातापिताकी वहां किसी किसमकी भी देखरेख न रहनेसे, स्वच्छंदवृत्तिके कारण, अन्य विद्यार्थियोंकी संगतिके कारण, धार्मिक अभ्यास या प्रवृत्तिके अभावसे, नयी धार्मिक भावना आनी तो दूर रही, पुराणी भी कमती होती जाती है ! यहां तक कि, कितनेक विद्यार्थी तो धर्मके नामसे ही हांसी करने लग जाते हैं। यह बात प्रायः सब के देखने में आती है-आ रही है. यद्यपि इस खामी को हटाने केलिए--श्रीमहावीर जैन विद्यालय आदि अनेक संस्था बोर्डिंगके रूपमें चल रही हैं, परंतु जैसा लाभ होना चाहिये होता नजर नहीं आता, इस लिए जैन युनिवर्सिटीकी अनिवार्य आवश्यकता प्रतीत होती है जिसमें व्यावहारिक शिक्षणके साथ साथ धार्मिक शिक्षण भी आखिर तक मिलता रहे। जब कभी भी ऐसी संस्था जैन समाजमें होगी तभी ही स्वर्गवासी गुरुदेव न्यायांभोनिधि जैनाचार्य १००८ श्रीमद्विजयानंदसूरि-श्रीआत्मारामजी महाराजकी अंतिम शुभ भावना “ सरस्वती मंदिर "की पूर्णरूपमें हो सकती है ऐसा मेरा अपना विचार है !!! महावीर के नाम का, विद्यालय सुप्रसिद्ध । युनिवर्सिटी रूपमें, होवे इच्छा सिद्ध ॥१॥ श्रीगुरुदेव प्रतापले, वल्लभ इच्छा पह। पूरण होवे संघमें, आनंद धर्म सनेह ॥२॥ १४-११-१९४१, स्यालकोट.
SR No.011563
Book TitleMahavira Jain Vidyalaya Rajat Jayanti Mahotsava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1940
Total Pages326
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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