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श्री महावीर जैन विद्यालय-अंजलि
१ आचार्य-पढानेवाला गुरु-अध्यापक-पंडित-मास्तर-उस्ताद. २ पुस्तक-ग्रंथ-किताबें. ३ निवास स्थान मकान-आश्रय. ४ सहाय-मददगार-सहायता देनेवाला,
५ भिक्षा-भोजन-खानपानसामग्री. इनमें प्रथमके पांच कारण पठन-पढनेकी सिद्धि करनेवाले हैं और बाह्य पांच कारण पाठको बढानेवाले अर्थात् पठन-पढनेमें वृद्धि करनेवाले हैं. जहां तक हमारा अनुभव है गुजरांवाला शहरका श्रीसंघ अग्रगामी अगुआ बने और पंजाबके श्रीसंघ उनको साथ देखें तो श्रीसरस्वती मंदिरका प्रारंभ हो सकता है, बादमें गुजरात-मारवाड-बंगालादि देश और बम्बई, सुरत, अमदाबाद, कलकत्ता आदि शहरोंकी मददसे उस कार्यकी वृद्धि-तरक्की हो सकती है, इत्यादि श्री गुरु महाराजके जवाब को सुनकर खुश होते हुए थापरजीने कहा, इसमें शक नहीं आप प्रभावशाली पुरुष हैं जब चाहेंगे वह कर सकेंगे!
श्रीगुरुदेव लुधीआनासे विहार कर जालंधर, जंडियालागुरु, अमृतसर, नारोबालादि शहरोंमें विचरते हुए सनखतरा शहरमें पधारे, वहां श्रीधर्मनाथ स्वामीकी प्रतिष्ठा और पौनेदोसौ (१७५) नूतन श्रीजिनबिंबोंकी अंजनशलाका वैशाख सुदि पूर्णिमा को कराके क्रमसे विहार करते हुए ज्येष्ठ शुक्ला द्वितीयाको शहर गुजरांवालामें पधारे.
इस वक्त श्रीसंघमें और शहर गुजरांवालामें जो आनंद उत्साह हो रहा था जिव्हामें वर्णन करनेकी और लिखनेकी कलममें ताकत नहीं है ! परंतु थोडे ही रोजमें वह आनंद उत्साह एकदम ही कपूरकी तरह ऊड गया और सबके सब निरानंद निरुत्साह हो गये ! सब मनोरथ मन ही मनमें विरला गये !! बात यह बनी कि, ज्येष्ठ शुक्ला सप्तमी मंगळवार अर्द्धरात्रि के समय अमंगल हो गया, जैन सूर्य अस्त हो गया; पूज्यपाद आचार्य देव न्यायांभोनिधि जैनाचार्य १००८ श्रीमद्विजयानंद सूरीश्वरजी श्री आत्मारामजी महराज इस मृत्यु लोकको छोडकर स्वर्गलोकमें जा पधारे !!! बस फिर क्या था ? सरस्वती मंदिर बनवानेकी भावना उनके साथ ही चली गई ! परंतु जिन सेवकोंने लुधीआनामें आपका व्याख्यान सुना था उनके हृदयमें उसकी गूंज रह गई ! उन सेवकोंमेंसे मैं भी एक तुच्छ सेवक हूं! श्रीगुरुदेवके शरीरके अग्निसंस्कारके समय प्रायः पंजाबका कुल श्रीजैनसंघ इकडा हुआ था, उनके सामने श्रीगुरुमहाराजकी अंतिम इच्छा सुनाई, श्रीसंघने सादर स्वीकार कर ली ! परंतु कार्यरूपमें परिणत होनेका तात्कालिक समय न होनेसे फूलनहीं फूल की पांखडी समझकर पाई फंडकी योजना शुरू की गई!