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श्री महावीर जैन विद्यालय
प्रेरककी अंजलि ॥ वन्दे श्रीचीरमानन्दम् ॥ आरोग्यबुद्धिविनयोधमशास्त्ररागा, पश्चान्तराः पठनसिद्धिकरा नराणाम् । आचार्यपुस्तकनिवाससहायभिक्षाः,
बाह्याच पञ्च पठनं परिवर्धयन्ति ॥ १॥ संवत् १९५२ की शरद ऋतुमें न्यायांभोनिधि जैनाचार्य १००८ श्रीमद्विजयानन्द सूरिप्रसिद्धनाम श्री आत्मारामजी महाराज अंबाला शहरमें श्रीसुपार्श्वनाथजीकी मार्ग शुक्ला पूर्णमासीको प्रतिष्ठा करा कर लुधीआना शहरमें पधारे, यहां अभीतक श्री जिनमंदिरजीका कोई काम नहीं हुआ था इसलिए श्रद्धालु श्रावकवर्गने व्याख्यानप्रसंगमें श्री जिनमंदिरजीका प्रसंग छड दिया. श्रीगुरुदेवजीने भी समयानुसार योग्य उपदेश दिया. इसवक्त एक क्षत्रिय जातीय थापर महाशय बोल उठे कि, महाराज साहिब आप देवमंदिर तो नये नये बनवाते जाते हैं परंतु इनके पुजारियोंको पदा करने वाले सरस्वतीमंदिर-पाठशाला भी तो होनी चाहिये! श्रीगुरुदेवजीने कहा थापरजी तुमारा कहना ठीक है, हमारा भी यह ख्याल है, परंतु सम्यक्त्व-शुद्ध श्रद्धानको कायम रखनके लिए सबसे पहले श्री जिनमंदिरजीका होना आवश्यक समझा गया है जो प्रायः बहुत स्थानोंमें बन गये हैं कहीं कहीं बन रहे हैं और बनते रहेंगे! अब हमारा यही ख्याल है कि, पंजाबमें सबसे अधिक श्रावक परिवार गुजरांवाला शहरमें है और हम उधर ही जा रहे हैं, यदि ज्ञानी महाराजने देखा होगा तो इस चौमासेमें यही उपदेश दिया जायगा कि, धर्मकी जानकारीके लिए ज्ञानकी जरूरत है. उसके लिए प्रबंध होना चाहिये. जिसमें उपर लिखे कान्यकी दश वस्तुएं श्रीगुरुदेवने फरमाई कि-विद्याकी प्राप्तिमें पांच कारण अंतरंग हैं और पांच ही कारण बाह्य हैं.
अभ्यन्तर १ आरोग्य-पठन करनेवाला विद्यार्थी नीरोग होवे. २ बुद्धि-बुद्धिमान् होवे. ३ विनय-विनयी-विनयवान् होवे. १ उद्यम-उधमी-मेहनतु होवे. ५ शास्त्रराग-शास्त्रोंपर रागवाला श्रद्धाल होवे.