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श्री लघुक्षेत्रसमासप्रकरणम् । वट्टपरिहिं च गणिअं, अंतिमखंडाइ उसु जिअं च धऍ। बाहुं पयरं च धणं, गणिअवमिमेहि करणेहिं ॥ १८७ ॥ विक्खंभवग्गदहगुण-मूलं वट्टस्स परिरओ होई। विक्खंभपायगुणिओ, परिरओ तस्स गणिअपयं ॥ १८८ ॥
ओगाहुउसू सुच्चिअ गुणवीसगुणो कला-उसू होई। विउसुपिहुत्ते चउगुण-उसुगुणिए मूलमिह जीवा ॥ १८९॥ उसुवग्गि छगुणि जीवा-बग्गजुए मूल होइ धणु पिढें । धणुदुगविसेससेसं, दलिअं बाहादुगं होई ॥ १९० ॥ अंतिमखंडस्सिसुणा, जीवं संगुणिअचउहि भईऊणं । लखंमि वग्गिए दस-गुणमि मूलं हवइ पयरो ॥ १९१ ॥ जीवावग्गाण दुगे, मिलिए दलिए य होइ जं मूलं । वेअढाईण तयं, सपिहुत्तगुणं हवइ पयरो ॥ १९२ ॥ एअं च पयरगणिअं, संववहारेण दंसिअं तेण । किंचूणं होइ फलं, अहिअंपि हवइ सुहुमगणणा ॥ १९३॥ पयरो सोस्सेहगुणो, होइ घणो परिरयाइसवं वा । करणगणणालसहि, जंतगलिहिआउ दट्ठव्वं ॥ १९४ ॥
इति श्रीलघुक्षेत्रसमासप्रकरणे प्रथमो जंबूद्वीपाधिकारः