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________________ યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ ३२७ मधुर सुधारस समजसुवाणी, (वाणी) ते मुझ मनि अधिक सुहाणी। अखलित ललित अमित गुणखाणी, भलइ भलइ सोपुरिसादाणी॥६॥ वामानंदण नयणाणंदण, कामित दान कलपतरु कंद।। निरमम निरमद नइ निरदंद,जयउ जयउ जिणसासण जिणचंद्॥७॥ इति श्रीपार्श्वनाथ लघुस्तवनं, कृतं सवाई जुगप्रधान . . श्रीजिनचंदसूरिणा । (राजलाभ लिखितं) १०-शत्रुजयमंडन नाभेयजिन हिंडोलणा गीत । - ऐ मेरे जिणवरके हरष हिंडोलणइ, सुकृत हिंडोलणइ सखि खेलइगी सुंदरी ॥ आंकणी ॥ सुभ भागि सुंदर नत पुरंदर, प्रगुण सुगुण निवास । सिरिनाभिनंदन त्रिजग वंदन, सुजस चंदनवास ॥ सिरि विमल भूधर सबल सिंधुर, खंध हरि संकास । मरुदेवि उर सिरिहंस अकलित, सकल पूरइ आस ॥१॥ ऐ मेरे० । भवभमण विरमण दुरित दरगण, दमण कुसल सुगेह । अति अवल अवर कुतीरथ गिणी, ग्रही परम तीरथ एह ॥ देखतां दरसण नयण विकसति, प्रीति पुलकति देह । पुंडरीक गिरिवरि जयउ जिहां सिरिनाभिनंदन रेह ॥२॥ ऐ मेरे । इणि शिखरि शिवपुरि सुघरि पहुता, सधर साधु अनेक । तिणि सिद्धक्षेत्र प्रसिद्ध शत्रुजय, पुण्य गुण अ(ति)रेक॥.. निज मुखइ सीमंधर वखाणति, महि महिम सुविवेक। .. जे करइ विधिसुं जात्र मानव, लहइ ते जस एक ॥ ३॥ ऐ मेरे। इहां शान सहित सुध्यान धरतां, पुण्यतरु अंकूरि । तिरि निरय दुरगति दुरित रुंधइ, मुगति पंथ पडूरि ॥ ए महिम जाणउ जस वखाणउ, करउ पातक दूरि ।। सिरि रिसह जिणवर चरण सेवक,भणइ जिणचंदसूरि ॥४॥ ऐ मेरे० इति श्रीशत्रुजयगीतं । श्राविका केलि पठनार्थ.शुभं भवतु । (पत्र १ तत्कालीन लिखित. यति गह. बीकानेर) २५
SR No.011554
Book TitleYuga Pradhan Jinachandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurlabhkumar Gandhi
PublisherMahavirswami Jain Derasar Paydhuni
Publication Year
Total Pages444
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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