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________________ ૩ર છે ..:: परिशिष्टः (७) दोइ दऊढमासी तप कीधऊ वली रे, तेहना नेऊ उपवास। मासखमण बारह महावीरजी रे, करि अभिग्रह उल्हास, श्रीम० ॥८॥ तीनसय साठ दिवस हुवइ तेहना रे, मासखमण परमाण। पखखमण बिहुत्तर कीधा वली रे, निरमल चरण निधान,श्रीम०९ सहस एक उपवास अनइ असी रे, पखखमणना होइ। एक रात्रिक प्रतिमा बारह धरी रे, छत्रीस तपदिन जोइ, श्रीम०.१० विसय अनइ गुण त्रीस वले कीया रे, छ? तप कसमल छोड । तसु उपवास अठावन च्यार सऊ रे, जाणेवा परचंड, श्रीम० ॥११॥ भद्र महाभद्र प्रतिमा साचवी रे, सर्वतोभद्र उपवास। . बार वरस खट मास इक पखवली रे, इण परितपअभ्यास, श्रीम०१२ वार वरस खट मास इक पख विचई रे, प्रभुजी पारणा कीध । गुणपचास दिवसवलि तीनसऊरे, सुजस घण तिण लीध,श्रीम० १३ इम तपना दिन सहु ए एतला रे, सहस च्यारि उपवास । छासठ नइइक सय अधिकेरडारे, चउविहार सुविलास, श्रीम० १४ इणपरि च्यारि करम चकचूरिनई रे, पाम्य केवल नाण । श्रीजिणचंदसूरीसर इम कहई रे, आज भला सुविहाण, श्रीम०॥१५॥ इति श्रीमहावीरजिनवर तपस्यादिनमान गीत७-श्रीमहावीर देवानंदा गीत । (ढाल......) माहणकुंड महावीरजी रे, देखी देवाणंदा माइ, मेरे मोहन!। वोलाइ सुत विरुदावली हो लाल, दरसण तुम्ह सुखदाय, मेरे मोहन वीर सुणो मुझ वालहा हो लाल, __ लालन हूं बलिहार, मेरे मोहन !। तुम्ह ऊपरि थऊ वारणइ हो लाल, - वल्लभ सुणि सऊ वार, मेरे मोहन!॥२॥ आंकणी सुंदर रूप सुहामणऊ रे, सहज सुकोमल देह, मेरे मोहन!। हसत वदत तुम हेजसुं हो लाल, निरख्या जागड नेह, मेरे मोहन ! ॥ ३॥ ..
SR No.011554
Book TitleYuga Pradhan Jinachandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurlabhkumar Gandhi
PublisherMahavirswami Jain Derasar Paydhuni
Publication Year
Total Pages444
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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