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________________ ૨૫૬ યુગપ્રધાન જિનયદ્રસૂરિ २ , तबहीचित चाहन चूप भई, 'समयसुंदर' के प्रभु" गच्छति, पठ पातशाहि अज्जव े की छाप, बालाये गुरु गजराज गति । १ ॥ पजी गुजरतें गुरुराज चले, विचमें चोमास जालोर रहे; 'मेदिनीतट' मंत्री मंडाण कियो, गुरु 'नागोर' आदमान लहे | मारवाड 'रिणी' गुरु वंदनको, तरसे 'सरसे" विच वेग लहे; हरख्यो संघ 'लाहोर' आये गुरु, पातशाह 'अकबर' पांव गहे ॥२॥ -एजी शाह अकबर' बच्चरके, गुरु सूरति देखतही हरखे, हम योगी जति सिद्ध साधु व्रती सबही पटदर्शनके निरखे; तप जप दया धर्म धारणको, जग कोइ नहीं इनके सरखे, समयसुंदर' के प्रभु धन्य गुरु, पातशाद 'अब जो परखे ॥३॥ पजी अमृतवाणी सुणी सुलतान, ऐसा पातिशाह हुकम किया, सब आलममांहि अमारि पलाइ, बोलाय गुरु फरमाण दिया । जग जीवदया धर्म दाखणतें, जिनशासनमें जु सोभाग लिया; 'समयसु ंदर' कहे गुणवंत गुरु दुग देखी हरषित होत हिया ॥ ४॥ एजी श्रीजी गुरु धर्मगोठ" मिले, सुलताण 'सलेम' अरज्ज करी गुरु जीवदया नित चाहत है, चित अंतर प्रीति प्रतीति धरी । 'कर्मच'द' बुलाय दियो फुरमाण, छुडाइ खंभाइतकी मछरी; 'समयसुंदर' कहे सब लोकनमें, जु 'खरतर 'गच्छकी ख्याति खरी ॥ 'एजी 'श्रीजिनदत्त' चरित्र सुणी, पातशाह भयो गुरुराजीय रे; उमराव सबे करजोडी खडे, पभणे अपणे मुख हाजीय रे युगप्रधान किये गुरुकु, गिगिडदृ धुंधुं वाजीय रे; "समयसुंदर' तूही जगतगुरु, पातशाह 'अकबर' गाजीय रे ॥६॥ एजी ज्ञान विज्ञान कला सकला, गुण देख मेरा मन रीझीये जी, પાઠાંતરો અને અમુક શબ્દોના અ १ गुरू पा० २ भे उल्या उमाशाह अरनी ४ वरये ! "टोपी -धश अमावस चन्द उदय, अज ( सरी) तीन वताय कला परखे". पा यि ७ धर्मी हर छन्न मुरानव भेट | 1 "
SR No.011554
Book TitleYuga Pradhan Jinachandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDurlabhkumar Gandhi
PublisherMahavirswami Jain Derasar Paydhuni
Publication Year
Total Pages444
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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