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________________ BALO कानजीस्वामि-अभिनन्दन ग्रंथ MAMATKARINAannenesshirANAMANMMCAMMEHAALIMIREY २. अष्टशती इसका परिचय इसी प्रन्थमें स्वामी समन्तभद्रकी महत्त्वपूर्ण कृतियाँ' शीर्षक लेखमें दिया जा चुका है। ३. प्रमाणसग्रह सविकृति इसमें प्रमाणों-युक्तियोंका संग्रह होनेसे इसे प्रमाणसंग्रह कहा गया है। इसकी भाषा और विषय दोनों अत्यन्त जटिल तथा दुरूह है। अकलङ्ककी दार्शनिक कृतियों में यही ग्रन्थ म बसे अधिक प्रमेयरहुल है। इसमें ९ प्रस्ताव और ८.१२ कारिकाएँ हैं। सबमें प्रत्यक्ष नथा उनके उपभेदोंका निरूपण किया गया है। सहचर, उत्तरचर, पूर्वचर आदि हेतुओंका भी बिलकुल नया चिन्तन किया गया है। इस पर स्वयं अकलङ्ककी म्वोपज्ञ विवृत्ति है और विभद्रोपजीवी अनन्तवीर्यकी विस्तृत टीका है. जिसका नाम प्रमाणसंग्रहभाप्य अथवा प्रमाणमंग्रहालंकार है । परन्तु यह टीका उपलब्ध नहीं है। ४ मिद्धिविनिश्चय सविकृति ___ इसमें १२ प्रस्ताव हैं और उन सबमें प्रमाण, नय और निक्षेपका विवेचन है । वे १२ प्रस्ताव इस प्रकार है १ प्रत्यक्षसिद्धि, २ सविकल्पकसिद्धि, ३ प्रमाणान्तरसिद्धि ४ जीवसिद्धि, ५ जल्पसिद्धि, ६ हेतलक्षणसिद्भि, ७ शास्त्रसिद्धि, ८ सर्वज्ञसिद्धि, ९ शब्दसिद्धि, १० अर्थनयसिद्धि ११ शब्दनय सिद्धि और १२ निक्षेपसिद्धि । इन प्रस्तावोंमें विषय-वर्णन उनके नामोंसे ही विदिन हो जाता है । इसमें प्रत्यक्षादिकांकी सिद्धि होनेसे इसका नाम 'सिद्धिविनिश्चय ' रखा गया है। इस पर विभद्रोपजीवी अनन्तवीर्यद्वारा विशाल टीका लिखी गई है। अवलंब देवक पदवाक्यादि कितने दुरूह और अर्थगर्भ होते हैं इसका अनुभव उनके सभी टीकाकागेन किया है। अनन्तवीर्य लिखते हैं कि अनन्तवीर्य होकर भी मैं अकलंकदेवके पदोंका व्यक्त अर्थ जानने में प्रभाचन्द्र अकलंकदेवकी सरणिको पुण्योदयका फल मानते हा अनातवीर्यक कथन द्वारा उसका निरन्तर अभ्यास करने पर समझ पाते तथा विवेचन कर पाते हैं। सिद्धिविनिश्चय ऐसा ही जटिल ग्रन्थ है। ५ न्यायविनिश्चय सविवृति इसमें तीन प्रस्ताव हैं और तीनों प्रस्तावोंकी मिलाकर कुल ४८० कारिकाएँ हैं । पहला प्रत्यक्ष प्रस्ताव है, जिसमें दर्शनान्तरीय प्रत्यक्षलक्षणोंकी आलोचनाके साथ जैन सम्मत प्रत्यक्ष मक्षणका निरूपण किया गया है और प्रासनिक कतिपय दूसरे विषयोंका भी विवेचन किया गया है। दूसरे अनुमान प्रस्तावमें, अनुमानका: लक्षण, साधन, साध्य, साधनाभास, साध्याभास आदि अनुमानके अलकनका विवेचन है और तीसरे प्रस्ताव में प्रवचन (आगम )का स्वरूप EKAMSeio AND
SR No.011511
Book TitleKanjiswami Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri, Himmatlal Jethalal Shah, Khimchand Jethalal Shah, Harilal Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year1964
Total Pages195
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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