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________________ merowseeviews BAFRICA कानजीस्वामि-अभिनन्दन ग्रंथ FFICIA. S ALALAMharma i IAddreanthalatak- *-M. .. .. . बनारसीविलास नाम दिया था । इममें लगभग ४६ रचनाओंका संग्रह है। इसमें संग्रहीत अध्यात्मगीत, नवरत्न कवित्त, ज्ञानपचीसी. अध्यात्मबत्तीसी, कर्मछत्तीसी, अध्यात्महिंडोलना, मोक्षपैडी, शिवपच्चीसी, भवसिन्धुचतुर्दशी, अध्यात्मफाग, गोरखनाथके वचन आदि ऐसी रचनाएँ है जो अध्यात्मरससे ओत-प्रोत हैं। कविका 'अर्धकथानक' हिन्दी भाषाका प्रथम आत्मचरित है। कविने इसमें अपने ५५ वर्षों का जीवनचरित प्रस्तुत किया है जो किसी प्रकार के दुराव अथवा ढोंगके लिखा गया है। अपने जीवनमें जो भी उन्हें त्रुटियां दिग्बाई दी उन्हें कविने खोलकर रख दिया है । अर्ध. कथानक साहित्यिक होने के साथ २ एतिहासिक भी है और इसमें तत्कालीन शासनव्यवस्था और जनजीवनका वास्तविक चित्र उपस्थित किया गया है। कविन बादशाह अकबर, जहांगीर और शाहजहांका शासन काल देखा था। एक शासनके देहावसान पर उस समय राज्य एवं जनताकी कैसी दशा होती थी इसका उसमें सजीव वर्णन हुआ है। इस प्रकार कविवर बनारसीदास १७ वीं शताब्दीके प्रतिनिधि कवि थे। आध्यात्मके वे सच्चे उपासक एवं प्रचारक थे। जो आत्मा-अनात्माकं वास्तविक रहम्यको जानना चाहता है उसे कविकी रचनाओंका सम्यक् परिशीलन करना चाहिये। बनारसोमाहित्यका जितना अधिक प्रचार होगा उतना ही मनुष्यको निजतन्वके समझने में आमानी रहेगी। तथा संपारी प्राणी निजस्वरूपको प्राप्त कर सकेगा जो कि जीवनका परम लक्ष्य है। (५) जगजीवन जगजीवन आगरेके रहनेवाले थे। ये अग्रवाल जैन थे और इनका गर्ग गोत्र था । इनके पिताका नाम अभयराज एवं माताका नाम मोहनदे था। अभयराज जाफरखांक दीवान थे और बादशाह शाहजहाँके पांच हजारी उमगव थे । ये बड़े कुशल शासक थे। इनके पिता अभयराज सर्वाधिक मुम्बी व्यक्ति थे। इनके कितने ही पनियां थीं। उनमें सबसे छोटो मोहनदेसे जगजीवनका जन्म हुआ था। जगजीवन स्वयं विद्वान् थे और अध्यात्मक कट्टर समर्थक थे। इनकी एक शैली थी जो अध्यात्मशैलीके नामसे प्रसिद्ध थी। पं. श्री हमराज, रामचन्द संघी, संघी मथुरादास, भवालदास, भगवतीदास एवं स्वयं कवि जगजीवन इसके प्रमुग्न सदस्य थे। ये प्रतिदिन गोष्ठी करते तथा उसमें आत्मिक चर्चाएं होतीं। इन्होंने वन १७.१में बनारसीविलासका संपादन किया और बनारसीदासकी छोटी २ रचनाओंको एकत्रित करके नष्ट होनेसे बचा लिया। ये म्वयं भी कवि थे और कविताएं किया करते थे । अब तक इनक ४५ पद उपलब्ध हो चुके हैं। इनके पदोंमें काव्यत्वकी झलक मिलती है। इनके अधिकांश पद स्तुतिपरक हैं। 'जगत मब दीसत घनकी छाया' इनका अत्यधिक सुन्दर पद है जिसे अच्छेसे अच्छे पदके समक्ष रखा जा सकता है। यहाँ पूरा पद पाठकोंके अवलोकनार्थ दिया जारहा है ARTHDRApotha
SR No.011511
Book TitleKanjiswami Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri, Himmatlal Jethalal Shah, Khimchand Jethalal Shah, Harilal Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year1964
Total Pages195
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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