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________________ MA कानजीस्वामि-अभिनन्दन ग्रंथ साधु रागादि भावोंको दूर करनेके लिए चारित्रको अंगीकार करते हैं, क्योंकि राग द्वेषकी निवृत्ति होनेपर हिंसादि पाप स्वयं छूट जाते हैं। उक्त उद्धरणोंसे यह सिद्ध है कि बाह्य चारित्र अन्तरङ्ग चारित्रकी प्राप्तिका निमित्त है, पर उसके होनेपर अन्तरंग चाग्त्रि प्राप्त हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। परन्तु राग-द्वेष पर विजय स्वरूप अन्तरंग चारित्र होने पर बाह्य चरित्र होता ही है। अतः प्रत्येक जैनको अहिंसा धर्मकी प्राप्तिके लिए मुख्यतासे अपने विकारोंपर विजय प्राप्त करनी चाहिए । यही जैनधर्मका रहस्य है। श्री वीतरागदेवकी पूजाका रहस्य __ श्री खेमचन्द जेठालालजी सेठ सोनगढ़ जिनेन्द्रदेवकी पूजाके प्रारंभमें हम गाते हैं उदकचंदनतंदुलपुष्पकैश्चरुसुदीपमुधूपफलार्धकैः । धवलमंगलगानरवाकुले जिनगृहे जिननाथमहं यजे । मैं जिनमंदिरमें जिननाथको पूजता हूं। जिननाथकी पूजा करनेवाला जीव किसी भी प्रकारके रागको कभी भला नहीं मान सकता। रागको भला माननेवाला जीव वीतराग देवका भजन नहीं करता है, किन्तु मोहका भजन करता है। जब वह कहता है कि 'मैं जिननाथकी पूजा करता हूं', तो फिर अंशतः भी जिन हुए विना अर्थात् रागकी एकत्वबुद्धि छोड़े बिना कभी भी वीतराग देवकी यथार्थ पजा नहीं हो सकती। जिनमंदिर कैसा है ? कहते हैं-धवलकारी और मंगलकारी गानके नादसे गूंज रहा हो ऐसा जिनमंदिर है; इसलिए जिनमंदिर में जानेवाले जीवको चाहिये कि वह जिससे अपने परिणामों में उबलता होवे, सदा वैसा मंगलकारी गान गावे । इसलिये जिनमंदिर में जाकर तीव्र कवायका भाव नहीं करना चाहिये, परिणामोंमें आकुलता नहीं करनी चाहिये । जिननाथकी पूजा किस द्रव्यसे करता हूं ? कहते हैं--उदक (जल), चंदन, तंदुल (अक्षत, चावल), पुष्प, चरु (नैवेद्य), सुदीप, सुधूप, फल और अर्घसे करता हूं। पूजा करते समय उस उस द्रव्य द्वारा पूजा करनेका हेतु क्या है उस पर विचार करना चाहिये । दृष्टांतके लिये चंदन और दीपक द्वारा पूजा करते समय हमें कैसा भाव होना चाहिये और उससे हमें क्या बोधपाठ मिलता है उस पर विचार किया जाता है। चंदनद्वारा पूजा करते समयकी भावना (१) जैसे चंदन तप्त वस्तुको भी शीतल बना देता है वैसे ही हे भगवन् ! चंदन द्वारा पूजा करते समय मैं भावना भाता हूं कि चंदनसे भी अधिक शीतन ऐसा मेरे आत्माका में
SR No.011511
Book TitleKanjiswami Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri, Himmatlal Jethalal Shah, Khimchand Jethalal Shah, Harilal Jain
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year1964
Total Pages195
LanguageGujarati
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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