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अध्ययन पोजें. दुक्खस्स कुसला परिष्ण मुदाहरति । (१५२)
इति कम्म परिण्णाय सव्वसो १ १ (१५३) जे अणन्नदंसी से अणण्णारामे, जे अणण्याररामे से अणण्णदंसी ।
जहा पुण्णस्स कत्थति तहा तुच्छस्स कत्थति, जहा तुच्छरस के स्थति तहा पुण्णस्स कत्थति । (१५५) . .
अविय हणे २ अणातियमाणे । एत्थंपि जाण, सेयं-ति पदिय ।
(१५६)
केयं पुरिसे कंच गए। एस वीरे पसंसिए, जे बढे पडि पोयए .. १ कथयतीतिशेषः, २ हन्यात्-राजादिः। ३ अनाद्रियमाणः । ४ नतः प्योना दुःखोनां कारणो घताव्यांछे तेमनो कुशळ पुरुषो झान पूर्वक परिहार करेछे तथा करावे छे. [१५२]
ए रीते कर्मनुं स्वरूप जाणीने सर्व रीते उपदेश देवो. १५३]
जे परमार्यदर्शी छे ते मोसना मार्ग शिवाय चीजे रमतो नधी. अने जे मोक्ष। मार्ग शिवाय वीजे स्थळे नथी रमतो तेज परमार्थदर्शी छे. [१५४]
मुनिए जे रीते राजाने. उपदेश आपको तेज रीते रांकने पण आपवो ने जे रीते रांकने आपको तेज रीते राजाने आपवो. [अर्थात् निरीहपणे वन्नेपर सरले भाव राखवो पण एवो कंइ नियम नथी के एकरूपे उपदेश आपदो, किंतु जे जेम प्रतिवोध पामे तेने तेम समजाव.] [१५५] ।
राजाने उपदेश आपतां तेना अभिप्रायने अनुसरीने उपदेश आपको] नहि वो कदाच ते कोपायमान थइ हणवा पण उठे. माटे धर्म कथा फरवानी रीति जाप्या शिवाय धर्मकथा करवामां पण कल्याण नथी. [१५६]
वास्ते मुनिए उपदेश आपतां "श्रीता पुरूप केवी तरेहनो छ तथा क्या देवने नमे छे" इत्यादि पावतो विचारी उपदेश आपचो. एवी रीतथी उपदेश आपीने, संसारमा उर्ज अधो अने तिरधीन दिशाओमां बंधाइ रहेल्प जीवाने जे