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. अध्ययन वीज.... सिया तत्थेगयरे विप्परामुसति , छसु अण्णयरंमि क-पति।(१४२
सुहही लालप्पमाणे सएण दुक्खेण मूढे विप्परियास मुवेति, सएण वेप्पमाएण' पुढो वयं पकुवति, जसि-मे पाणा पव्वहिया, पडिलेहाए णो. गेकरणाए,३ एस परिष्णा पवुच्चति, कम्मोबसंती । (१४६) ने ममाइयमतिं जहाति, से जहाइ ममाइतं, सेहु दिदुपहे मुणी जस्स; पत्थि ममाइतं । (१४४)
तं परिनाय मेहावी विदित्ता लोगं, वंता लोगसणं, से मतिमं परेक्कमेज्जत्ति बेमि । (१४५) ..
णातिं सहते वीरे, वीरे णो सहते रति; जम्हा अविमणे वारे, त१ समारभं करोति २ विविधैःप्रमादैः ३. निकरणं परपीडोत्पांदनं तस्मै. नोत्कर्म कुर्यात् इतिशेष :] ४ एवंसति भवतीति शेष :
जो कोय छकाय माहेन। एक कायना आरंभमा प्रवर्ततो होय तोपण ते छकाय महिना गमे ते कायनो आरंभ करनार गणायछे. (पटले के छए क.यनों आरंभी गणाय छे.) [१४२] .
सुखार्थी थइ दौडधाम करतो थको जीव पोतानः टेथे करेला दुःख करीने . मूढ बनी दुःखी थाय छे, तथा जाते करेला इमादथी व्रत भंग करे छै या विचित्र दशाओ भोगवे छे के जे दशाओमा रहेला जीवो अति दुःखित वर्ते छे. आई जीनीने मुनिए पाने पीडाकारी कंइ पण काम नहि करवू, परिज्ञा ते ए कहेवायः अने आम थयायीन कर्मक्षययाय छे. [१४३]
जे मनत्व बुद्धिने मूके छे ते ममत्व मूके छे, जेने ममत्व नयी तेज मार्गनो जाण मुनि जाणवो. [१४४]
एम जाणी चतुर मुनिए लोक स्वरुप जार्ग.ने लोक संजाओ दूर करी वित्रका बई विचरतुं. [१४५]
पराक्रमी मुनि नधी रनि धरतो, नथीं अरति धरतो, मटेत शत हाय.