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आचारांग-मूळ तथा भाषान्तरः एस मग्गे आरिएहिं पवेदिते, जहेत्थ कुसले णोवलिप्पेज्जासिं त्ति बेमि। [१३०]
कामा दुरतिक्कमा, जीवियं दुप्पडिबृहणं, १ कामकामी खलु अयंपु रिसे, से सोयति, झूरति, तिप्पति, पिंड्डुति, परितप्पति। [१३१]
आयतचक्खू लोगविपन्सी लोगस्स अहोभाग जाणति, उर्दू भागं जाणति, तिरियभागं जाणति । (१३२)
गद्धिए अणुपरियडमाणे २ संधि विदित्ता इह मच्चिएहिं , एस वारे पसंसिए जे बद्धे पंडिमोयए । (१३३)
जहा अंतो तहा बाहिं जहा बाहिं तंहा अंतो।[१३४] १दुःप्रतिवृहणीयं. (दुर्वर्द्धनीय)२ कामाभिलाष निवृत्तये न प्रभवतीतिशेषः ३ मर्येषु [यो विषयादीन् त्यजतीतिशेषः]
ए मार्ग तीर्थंकर देवोए वताव्यो छे. एमां प्रवर्तनार कुशळं पुरूपो कर्मथी बंधाता नथी. [१३०]
विषय वांछनाथी दूर रहे, घणुं विकट काम छे. वळी जीवित पण वधी शकतुं नथी. [माटे कोइ वखते पण प्रमाद नहि करवो] आ ? जंतु हमेशां विषय वांच्छामां गरकाव थइ रहे छे ने विषयोनो वियोग थतां शोच करे छ, झुरे छ। निर्मर्याद थाय छे, पीडाय छे अने अकलाय छे. (१३१) ।
दीर्घदर्शी अने दुनिआना रंगने जाणनार पुरूप लोकना अधोभाग ऊर्श्वभाग अने तिर्यग्यागने जाणे छ [एटले के एमां शी रीते जीव उत्पन्न थाय इत्यादि विना जाणी शके छे.] [१३२]
विषयमा गृद्ध लोको वारंवार संसारयां भटक्या करे छे. माटे मनुष्यभवमां अवसर आवेलो जाणीने जे विषयादिकनो त्याग करे ते पराक्रमी पुरुष वरखणायो छ. एवो पुरुष, संसारमा बंधाइ गएला वीजा जीवोने पण अंदरना तथा बाहेरना बंधनोथी छोडारी शके छे. [१३३]
शरीर जेम बाहेर असार छे तेम अंदर पण असार छे. अने जेम अंदर असार छे तेम बाहेर पण असार छे.
१ आ पामर प्राणी.