________________
अध्ययन पेहेलु. तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिया। इमस्स चेव जीवियस्स प-. विंदणमाणणपूयणाए, जाइ मरणमोयणाए, दुक्खपडिघायहेडं, से सयमेव अगणिसत्थं समारंभति, अण्णेहिं वा अगणि सत्थं समारंभमाणे समणुजाणति। तं से अहियाए, तं से अबोहिए। [३३]
__से तं संबुज्झमाणे आयाणयिं समुटाए सोच्चा भगवओ, अणगाराणं वा अंतिए ; इह मेगेसिं णायं भवति एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इच्चत्थं गढिए लोए; जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहिं अगणिकम्मसमारंभेणं अगणिसत्थं समारंभ साणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसति।" [३४]
से बेमि, संति पाणा, पुढविणिस्सिया तणणिस्सिया, पत्तमिस्सिया, कटणिस्सिया, गोमयणिस्सिया, क्यबराणिस्सिया। संति संपातिमा पाणा आहच्च संपयंति य। अगणिं च खलु पुटा एगे संघाय मावज्जति। जे
१आहत्य उपत्या
अहीं भगवाने स्पष्ठ रीते आज्ञा करी छे के, तेओ आ दगानीनी कीर्ति, मान, अने खानपान मोट, जन्म जरामरणथी छूटदा माटे तथा दुःखो टाळवा माटे जाते अग्निनी हिंसा करे छे, बीजा पासे करावे छे अने तेना करनारने रुडं म.ने छे. पण ते तेमने आहत अने अज्ञान वधारनार थवानु. [३३]
एवं जाणीने सत् पुरुषो, भगवान अथवा तेमना साधुओ पासेथी आदरवा लायक वस्तुओ सांभळीने आदरे छे अने तेओ एवं माने छे के आग्निकायनी हिंसा ते, खरेखर, कर्म बंधनी हेतु छे, मोहनी हेतु छ, मरणनी हेतु छ, भने नर्कनी हेतु छै. पण अजाण लोको ए वावत विषे घणा मुंझाइ पडया छे. जे माटे तेओ अनेक प्रकारे अनिकायनी तथा ते साथेना बीजा जीवोनी हिंसा करता रहे छे. [३४]
जे माटे हुं बतावी आपुंछ के जान, तणखला, पान, लाकडां, छाणा अने कचरो ए सर्वे साथे इस जीवो रहे छे. ते त्रस जीवो तथा वीजा ओचिंता अंदर आवी पडता संपातिमा लस जीवो ते वधा अग्नि समारंभ करतां अग्निना
इता नाना जीवो..