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अध्ययन पहेठे. २ अप्पेगे जीह मन्भे, २ अप्पेगे तालु मन्भे, २ अप्पेगे गल मन्भे, २ अप्पेगे गंड मब्भे, २ अप्पेगे. कन्न मन्भे, २ अप्पेगे णास मन्भे, २ अप्पेगे अच्छि मन्भे, २ अप्पेगे भमुह मन्भे, २ अप्पेगे णिडाल मन्भे, २ अप्पेगे सीस मब्भे; २ अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दबए। (१५)
एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्छेते आरंभा अपरिणाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्छेते आरंभा परिणाया भवंति। (१६)
तं परिणाय मेहावी नेव सयं पुढविसत्थं समारंभेज्जा, नेवण्णेही पुढविसत्थं समारंभावेज्जा, नेवण्णे पुढविसत्थं समारंभंते समणुजाणेजा। जस्सेते पुढविकम्मसमारंभा परिणाया भवंति से हु मुणी परिणायकम्मे ति बेमि । (१७)
नाभि, पेट, पासळी, पूंठ, छाती, हैयुं, स्तन, खभा, बाहु, आंगळीओ, नख, गर्छ, हडपची, होठ, जीभ, ताल, लागा, कान, नाक, आंख, भ्रमर, ललाट, अने मायुं विगरे अवयवोगा भालानी अणीओ परोवे त्यारे ते अंधवधिरने जे प्रमाणे वेदना थाय छे. तेज प्रमाणे एकेंद्रिय जीवाने पण मारतां वेदना थाय छे.]
(अथवा जेय एक माणसने कोइ एकदम घा मारी मूर्छित करे अने पछी मारी नाखे त्यारे तेने मूछी होवा छतां पण पीडा थायज छे ते प्रमाणे ए पृथ्वीकायना जीवोने पण मारतां वेदना थायज छे.) (१५) ।
ए पृथ्वीकायनी हिंसा करनार पुरुषने आरंभर्नु ज्ञान अने त्याग नथी होता एटले आरंभ लाग्या करे छे, अने तेनी हिंसा वर्जनार पुरुषने आरंभनुं ज्ञान तथा. त्याग होय छे एटले आरंभ लागी शक्तो नथी. (१६)
माटे] बुद्धिमान् पुरुषे ए बधुं जाणीने जाते पृथ्वीकायनी हिंसा करवी नहि वीजा पासे करावी नहि, अने तेना करनारने रुडुं मानवू नहि. [एवी रीते जे. पृथ्वीकायनी हिंसाने अहित करनारी समजीने त्याग करे तेज मुनि जाणवो; एम हुँ कहुंझु. [१७]
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