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आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर. अणगाराण अंतिए; इह मेगेसिं णायं भवति-एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इचथं गठिए लोए ; जमिणं विरूबरूवेहिं सत्थेहिं पुढविकम्मसमारंभेणं पुढविसत्थं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूबे पाणे विहिंसइ। [१४
से वेमि----अप्पेगे अंध मन्भे, अप्पेगे अंध मच्छे-अप्पेगे पाय मन्भे, अप्पेगे पाय मच्छे ;-अप्पेगे गुंफ मन्भे, २७ अप्पेगे जंघ मन्भे, २ अप्पगे जाणु मभे, २ अप्पेगे ऊरू मन्मे, २अप्पे कड़ि मब्भे, २ अप्पेगे णाभि मन्भे, २ अप्पेगे उयर मन्भे,२ अप्पेगे पाप्त मन्भे, २ अप्पेगे पिटि मन्मे, २ अप्पेगे उर मन्भे, २ अप्पेगे हियय मन्भे २ अप्पेगे थण मन्भे, २ अप्पेगे खंब मन्भे, २ अप्पेगे बाहु मब्भे २ अप्पेगें हत्थ मन्भे, २ अप्पेगे अंगुलि मन्भे, २ अप्पगे णह मन्भे, २ अप्पेगे गवि मले २ अप्पेगे हणुय ममे, २ अप
आभियात् आछिद्यात् ७ विकचिह्नात् सर्वत्र अच्छे इत्यंत वर्तिपदमापि वाच्यम् तार्थंकर भगवान् अथवा तेवना साधुओ पासेची पोताने आदरचा लायक (जान दशन अने चारित्र रुप) वनुयो सांभळी करीने तेमनो अंगीकार करे छे.(अने) तेवा पुरुपो ए७ सपजे छ के आ (पृथ्वीकायना आरंभ) ते खरेवर कर्मबंधनो हेतु छे. योनो हेतु छे, मरणनो हेतु छे, अने नरकनो हेतु छे; एवू छतां जे घणा लेाको ए पृथ्वीकायना जीवाने त्या तेना सायना वीजा अनेक जीवाने अनेक प्रकारना शखोवडे मारता रहेछे, ते मात्र तेओ सादा पीवा तथा कीर्ति विगैरे मेळवामां मुंझा. इ पडया छे. (१४)
(हे शिज्य, जो तमे मने पूछशो के ए पृथ्वीकापना जीवो देखता नय:, मूं. घता नयी, सांभळता नयी अने चालता पण नयी माटे एमने भारतां ते गी पीडा थती होते हु एक दृष्टांतथी कहुं हुं के जेम कोई एक जन्मयीन अंधधिर पुरुष होय तेने) जूदा जूदा माणसो तेना पग, चूंटी, जंघा, घुटण, सायक, के,