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________________ [२४९] अध्ययन वार,. ईर्याख्यं द्वादशसध्ययनं. (प्रथम उद्देशः) “ अब्भुवगते खलु वासावासे, अभिपवुढे ', बहवे पाणा अमिसंभूया, बहवे बीया अहुणुन्भिन्ना, अंतरा से मग्गा बहुपाणा बहबीया जाव संताणगा, अण्णोकंता पंथा, णो विण्णाया मग्गा, " सेवं णच्चा णो गामाणुगामं दूईज्जेज्जा, तओ संजयामेव वासावासं उवल्लिए-जा। (७१३ से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणेज्जा गामं वा जाव रायहाणि वा-इमंसि खलु गामसि वा जाव रायहाणिसि वा णो महती १ पयोधर इतिशेषः अध्ययन बारमुं. ईया.. पहेलो उद्देश. मुनि अथवा आर्या एवँ जाणे के “वरसादनी रुतु आवी चूकी छे, वरमाद वरस्योछे, घणा जीवजंतु उत्पन्न थयाछे, घणा अंकुर फूटयांछे, रस्ताओ तेओ बडे भराइ गया छे, अने तेओना पर वधु आवजाव थती अटकी पडवाथी तेओ पूरेपूरा मालम पण पडी शकता नथी" तो तेमणे गामोगाम फरवातुं बंध करी वकालना (चार महिना) लगी एक मुकामे निवास करवो. [७१३] जे गाम के शहेरमां मुनिने योग्य मोहोटी भणया करवाने अनुकूळ पडती १ फर के चालवू हालवू.
SR No.011502
Book TitleAng 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavjibhai Devraj
PublisherRavjibhai Devraj
Publication Year1906
Total Pages435
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & Conduct
File Size17 MB
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