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आचारांग-मूळ तथा भाषान्तर. जाए, बहु उज्झियधम्मए-तहप्पगारं अंतरुच्छुयं जाव संवलिवालगं वा " अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा । (६२८)
से भिक्खू वा (२) से ज्जं पुण जाणेज्जा, बहुअट्टियं मंसं वा, मच्छं वा बहुकंटगं;-अरिंस खलु पडिगाहितंसि अप्पे सिया भोयणजाए, बहु उझियधम्मिए-तहप्पगारं बहुअट्रियं मंसं मच्छं वा बहुकंटगं लाभे संते जाघ णो पडिगाहेज्जा । (६२९)
से भिक्खू वा (२) जाव समाणे सिया णं परो बहुअहिएण मसेण मच्छेण उवणिमंतेज्जा “ आउसंतो समणा, अभिकंखसि बहुअद्वियं मंसं पडिगाहेत्तए ? " एयप्पगारं णिग्योसं सोचा णिसम्म से पुव्याभेव आलोएज्जा, “ आउसो-त्ति वा भइणित्ति वा, णो खलु मे कप्पइ से बहुअद्रियं मंसं पडिगाहेत्तए । अभिकंखसि मे दाउं, जावइयं तावइयं
फळी विगेरे जेओमां थोडं खावातुं होयछे अने बहु छांडवानुं होयछे, सेवी चीजो ग्रहण न करवी. [६२८]
वळी बहु ठळियावाळु [पनस विगेरे फळोतुं दळ] गर्भ या बहु कांटावाळी मत्स्याकारनी वन पति ने लेवाथी थोडं खावातुं वने अने वहु छांडबुं पडे छे ते पण ग्रहण नहि करवां॰ [६२९]
कदाच मुनिने कोइ निमंत्रण करेके "हे आयुष्मन् श्रमण, तमने टळियावार्छ पुद्गल जोइए छीए"? भाई वाक्य सांभळी मुनीए तरतज जवाव आपवो के "हे आयुप्मन् या वहेन, मने वहुउळियाप ढुं पुदगल-गर्भ नथी जोइतुं, अगर तमे मने ते देवा चहाता हो तो जेटलुं तेना अंदर पुद्गल-गर्भ छ तेटटुंआपो ठळिया नहि
१ टीकाकार-बाह्य परि भोगादि माटे अलिदार्य कारणपोगे मूळ पाटना शब्दोनो अर्थ मत्स्य-मांस अपवाद मार्गे करेछे. परंपरा अर्थ भाषान्सरमा लन्या मुजब प्रसिद्धछे. जुओ शब्दार्य विवेक.