________________
;
( 751 )
स्मरास्त्रनिकरैरपराजितेन सिद्धिर्वधूर्भुवमबोधिपराजितेन । संवृद्धधर्म सुधिया कविराजमानः
क्षिप्रं करोतु यशसा स विराजमानः ॥ २ ॥
*
*
*
End. - तुष्टिं देशनया जनस्यमनसे येनस्थिर्तदित्सता
सर्व वस्तु विजानता शमवता येनक्षता कृच्छ्रता । भव्यानंदकरेण येन महतां तत्त्व-प्रणीतिः कृता
तापं हंतु स मे जिनः शुभधियां तातः सतामीशिनाः ॥ २५ ॥ इति देवनंदकृतिरित्यं गर्भषडारचक्रमिदं समाप्तम् ॥
श्रावकाचार.
By देवसेन.
Beg . — ॐ नमः श्री पार्श्वनाथाय धरणेंद्रपद्मावतीसहिताय । णमकारेपिणुपंचगुरु दूरि दलिय दुहकम्मु । संखेवेपयडक्खरहि अक्खमि सावयधम् ॥ १ ॥ दुज्जणु सुहियउहो उजगि सुयणु पयासिउज्रेण । अमउवि वासरजमह जिम मरगउ कच्चेण ॥ २ ॥ जिह समिला सायर गयहि दुलहु जुव्वहरंतु । ति जीवह भवज गयह मणुवत्तणु संबंध ॥ ३ ॥ सुहुयार मणुयत्तणह तं सुह धम्मायत्तु । धम्मुविजिय तं करहि जंअरहंत इवुत्तु ॥ ४ ॥ अरहंतु वि दोसहरहिय जासुविकेवल णाणु । णाया मुणिय कालत्तग्रह वयणुक्तिस्स पमाणु ॥ ५॥ तं पायडु जिणवरवयणु गुरुउवएसइ होइ । अंधार विणु दीवss अहव कि पिंछइकोइ ॥ ६ ॥ संजमसील सऊचतउ जसुसूरिहि गुरुसोइ । दाहछेय कसामु उत्तम कंचणु होइ ॥ ७ ॥ . मग्गइगुरुउवएसियइ णरसिद पह णिजति । तंविणु are aणयरह चोरहपिडि विपडंति ॥ ८ ॥