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________________ ( 752 ) यारह वितं कहिउरेजिय सावयधम् । सत्तिएपालं तहं सहलउ माणुस जम्मु ॥ ९ ॥ अउ पाइ मूलगुणु विष्णुणइवि होइ । जो सम्मत विसुद्ध पढमउ- सावउ सोइ ॥ १० ॥ Eri - जो जिणसासण भासियउ सो म कहियउ सारु । जो पाले सइ भाउकरि सो तरि पावइ पारु ॥ १ ॥ एहु धम्मु जो आयरइ उ ण्णह मह कोइ | सोणरु णारी भव्व णु सुरइय पावइ सोइ || २ || काइ बहुल्लइ भंषियइ तालू सूखइ जेण । यहु परमक्रु र कम्मक्खउ हुइते || ३ || Beg. भव्वय लग्गा सुवयण सुग्गइ गच्छइ तेण । जहदिट्टि व भव गयह कहिउण किव्वउ तेण ॥ ४ ॥ दंसणणाणचरित्ततउ रिसिगुरु जिणव देउ । वोह समाहि सहु मरणु भवि भवि दिज्जउ एहु ॥ ५ ॥ इय दोहावद्ध वयधनं देवसेन उवदिट्ठ । हु अक्खर मत्ताही पयसयण खमंतु ॥ ६ ॥ इय दोहावद्ध सावय धम्म-सम्मत्ते लिखतमायरिय जगतकीत्तेण । संवत् १७८० कुंवार दि १४ हृदयन मध्यात् लिखितमिदं ॥ श्रुतपंचमीकथा. Eyy धनपाल. . - ऊं नमो वीतरागाय ॥ जिणसासणे सारु । णिद्धुअपाचकलंकमलु । सम्मत्तविसेसु । णिभुणउ सुअपंचमिफल ॥ छ० ॥ १ ॥
SR No.011136
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscript in the Central Provinces and Berar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages491
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size36 MB
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