________________ शास्त्राभ्यासी जिनपतिनुतिः सहतिः सर्वदायैः __ सद्वृत्तानां गुणगणकथा दोषवादे च मौनम् // 6 // सर्वस्यापि प्रियहितषची भावना वात्मतत्त्वे / सम्पयन्तां मम भवभवे यावदेतेऽपवर्गः // 10 // आर्यावृतम् / तव पादौ मम हदये मम हृदयं तव पद्धये लीमम् / विष्ठतु जिनेन्द्र तापद्यावनिर्धारणसम्माप्तिः // 11 // आर्या / अक्सरपयत्थहीणं मत्ताहीणं च जंमए भणियं। तं खमउ माणदेव य मज्झवि दुःक्वक्वयं दिन्तु // 12 // दुक्खखनो कम्मखत्री समाहिमरणं च वोहिलाहोय / मम होउ जगतबंधव तव जिणवर चरणसरणेण // 13 // (परिपुष्पांजलिं क्षिपेत् ) विसर्जन। जानतोऽज्ञानतो चापि शालोन स्तंभषा। तत्सर्व पूर्णमेवास्तु त्वत्प्रसावाजिनेश्वर // 6 // आहानं नैव जानामि नैष जानामि पूजनम् / विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर // 2 // मंत्रहीन क्रियाहीनं द्रव्यहीनं तयैव / तत्सर्व शम्यतां देव रक्ष रक्ष जिनेश्वर // 3 // आहता ये पुरा देवा लब्धभागा यथाक्रमम् / ते मयाभ्यर्चिता भक्त्या सर्वे यान्तु यथास्थितिम् // 4 // नित्यपूजाविधानं समाप्तम् /