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जैन साधु शेष समस्त साधु-संप्रदायोंकी तुलनामें अधिक सत्यवादी, अधिक त्यागी और अधिक निःस्वार्थ होते हैं। जनोंके दो प्रसिन्द्र एक श्वेतांबर अर्थात् सफेद कपडा पहननेसम्प्रदाय है। वाले और दूसरे दिगंबर अर्थात् नंगे रहनेवाले।
हिन्दू-धर्मपर बुध्ध-धर्मकी अपेक्षा जैन-धर्मका हिन्दू धर्मपर अधिक प्रभाव पड़ा है और भारतमें बौध्धोंकी प्रभाव । अपेक्षा जैनोंकी संख्या बहुत अधिक है। मेरी
संमतिमें बौध्ध-धर्म और जैन-धर्मका सामान्य प्रभाव भारतके राजनीतिक अधःपातका एक कारण हुआ है। जनतामें संसारकी असारताका विचार-जिसको शंकरके वेदांतने भारी महायता दी इतना फैल गया कि वे स्वदेश-रक्षासे बिलकुल असावधान हो गये । त्यागका तत्वज्ञान वहींतक उपयोगी है जहांतक वह भोगकी उचित सीमाका उल्लंघन न करने दे । स्वयं त्यागको राजसिंहासनपर बैठाना और उसको मनुष्यका धर्म बना देना भारी भूल है । संसार भोगका स्थान है। उसका भोग उतना ही उचित है जिससे मनुष्य भोगका दास न बन जाय और जिससे दूसरोंके स्वत्वोंमें हस्तक्षेप न होता हो । सर्वोत्तम नीति वह हैं जो न भोगको और न न्यागको अपना आदर्श बनावे, और मध्यवर्ती मार्गक अवलम्वन करे । इस दृष्टिसे महात्मा बुद्धकी प्रारम्भिक शिक्षा अधिक ग्राह्य और महत्वपूर्ण थी । Page 129-132 Bharatvarshaka. Itihasa.
By Lala Lajpatrai.