SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ PART II. APPENDIX. NOTE No. .. महामहापाध्याय शैष्णवाचाय स्वामि राममिश्रः-- सर्वनन्त्र स्वतन्त्र सत्सम्प्रदायाचार्य स्वामिराममिश्रवाशिणीते जैनधर्म विषयव्याख्यान दशके प्रथम व्याख्यानम वैदिक मत और जैन मत सृष्टिकी आदिस वरावर अविछिन्न बने आये हैं. दो। मजहोंक सिद्धान्त विशेष धनिष्ठ समीप संवन्ध रखन है. x x x सत्कार्यवाद, सत्कारणवाद, परलोकास्तित्व, आत्माका निर्विकारत्व, मोक्षका होना, और उस्का नित्यत्व, जन्मान्तरके पुण्यपापसे जन्मान्तरके पुण्यपापसे जन्मान्तरमें फलभोग, व्रतोपवासादिव्यवस्था, प्रायश्चितव्यवस्था, महाजनपूजन, शब्दप्रामाण्य इत्यादि समान हैं. इसदेशमें आजकल अनेक अल्पज्ञ जन वाद्धमन और जनमतका एक जानते हैं और यह महा भ्रम हैं। जैन और बौद्धोंके सिद्धांतको एक जानना ऐसीभूल है कि-- जैसे वैदिक सिद्धांतको मानकर यह कहना कि वेदोन वाश्रमव्यवस्था नहीं है अथवा जाति व्यवस्था नहीं है, x x x x जब कि खाद्य खण्डनकार श्रीहपने स्वयं अपने ग्रन्थमें बोद्ध के साथ अपनी तुलना की है, और कहा है कि हम लोगेामे [याने निर्विरोपा द्वैत सिद्धान्तियोंसे] और बौद्धोंस यही भेद है कि हम ब्रह्मकी सत्तामानते हैं, और सब मिन्या कहते हैं, परन्तु बौद्धशिरोमणि माध्यमिक सर्व शून्य कहता है, तबतो जिन-जनोंने सब कुछ माना उनमें नफरत करनेवालेकु छ जानतेही नहीं, और मिथ्याद्वषमात्र करते हैं यह कहना होगा। में आपको कहांतक कहूं बडे २ नामी आचार्याने अपने ग्रन्थोमें जो जैनमतखण्डन किया है वह ऐसा किया है कि जिसे सुन देख कर हँसी आती है। मे-वैष्णव संप्रदायका आचार्य है. x x तोमी भरीमजलिसमें मुझे यह कहना सत्यके कारण आवश्यक हुआ है कि जैनोंका ग्रंथ समुदाय सारस्वत महासागर है ।
SR No.011046
Book TitleHistorical Facts About Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Lajpatrai
PublisherJain Associations of India Mumbai
Publication Year
Total Pages145
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy