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स्वदेशी-आन्दोलन और बायकाट ।
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अंगरेज-जमीदार किसी आयरिश-किसान को बे दखल करै तब उस खत को कोई भी दूसरा मनुष्य न लवै; जो इस नियम का पालन नहीं करेगा वह समाज से अलग कर दिया जायगा---उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जायगा । दुर्भाग्य-वश इस नियम का प्रथम उल्लंघन कप्तान बायकाट नाम के एक साहब ने किया । तरंतही वह समाज से अलग कर दिया गया। उसके खेतों में फमल काटने के लिये आयलैंण्ड में एक भी आदमी नहीं मिलता था । उसके नौकरों ने नौकरी छोड़ दी। उसके पत्र और तार नहीं पहुंच सकते थे । धर्मोपाध्याय की महायता से भी वह वञ्चित हो गया था । इसी प्रकार, जो लोग उक्त नियम का भंग करते थे उन्हें मामाजिक दंड दिया जाता था। इसका वर्णन अंगरजी के एक लेखक ने इस प्रकार किया है• Tbovetting mar- th
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this place of fic prin" इसका भावार्थ यह है:-- बहि-कृत मनुष्य का खान-पान बंद हो जाता है; उसके पशु मेला म किन नहीं पाते; लुहार उसके घोड़े की नाल नहीं बांधता; बढ़ई उमकी गाड़ी को नहीं सुधारता; उसके पुराने दाम्न उससे घृणा करने नगन हैं; पाठशाला में उमकं लड़कों की निंदा की जाती है; दवालय में वह पतित मनुष्य की तरह अकंला अपने स्थान पर बैठा रहता है।
इनसाइक्लोपीडिया नामक अंगरजी बृहनकांश में लिखा है कि • Hradicine wire orr ibis it doesgedienoras posicione l'ils the nich bited of all
crossroad p. 111. S timon 100 vite could be found in eling in urako." अथान, बहिष्कृत मनुष्य को अपने बीमार लड़के के लिये, दूकानदार के पास म, दवाई तक नहीं मिलती थी । कभी कभी तो मुर्दे के लिये कबर बदन को आदमी तक नहीं मिलता था । उसी समय से 'बायकाट' अगरेजी भापा में व्यवहत होने लगा है । मच है, जब अन्य उपायों से अपने कार्य की मफलना होती हुई नहीं देख पड़ती नब इसी एक रामबाण से अपने बहुतेरे दुःखों का निवारण हो सकता है । इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण पाये जाने हैं, जिनमें यह विदित होता है, कि भिन्न भिन्न देशों के लोगों को इमी एक उपाय से लाभ हुआ है।