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________________ बायकाट अथवा बहिष्कार और स्वदेशी वस्तु-व्यवहार की प्रतिक्षा। १५ को ऐसे ही उपायों की योजना करनी चाहिए, जो उनके स्वार्थान्ध नेत्रों में परार्थ-दर्शक अञ्जन का काम करे और हमारा इष्ट हतु सिद्ध कर सके। सारांश यह कि, जिन लोगों की बुद्धि गजमद और स्वार्थ से भ्रष्ट हो गई है, उन लोगों को व्याख्यान मुनाने से हमाग कल्याण न होगा। जिन उपायों से उनके अपरिमन म्वार्थ-हित का कुछ प्रतिबंध होगा---उनकी जब पर कुछ थोड़ासा भी असर होगा--- उन्हींका अवलम्ब, इम समय, हिन्दुस्थान के प्रत्येक शुभचिंतक को करना चाहिए। ___ जब कोई मनुष्य अपने मत का पुष्ट और दृढ़ करन के लिए, और लोगों को, जो उसके मत के विरुद्ध हो, तिरस्कृत वा बहिष्कृत करे, तव रमको अंगरेजी में 'बायकाट कहते हैं। यह बायकाट भारतवर्ष में कोई नई यान नहीं है । उमका उपयोग, हमारे धार्मिक और सामाजिक व्यवहारां में, प्राचीन ममय से, चला आ रहा है । हम दग्यते हैं कि जब कोई मनुष्य अपनी जाति वा समाज के विरुद्ध कुछ अनुचित काम करता है तब वह अपनी जानि वा समाज में अलग कर दिया जाता है; उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाना है। वह जानिच्युत किया ज.ना है। इसी प्रकार, जय कोई मनुष्य अपने धर्म के विरुद्ध कुछ काम करता है तब वह धर्मबाट ममझा जाता है। इसीको हमारं धर्मशास्त्र में “ बहिष्कार' कहने हैं । यह एक प्रकार का दण्ड है । उमका मुख्य उपयोग धार्मिक और सामाजिक समझा जाता है। यदि उसका उपयोग राजनैतिक विषयों में भी किया जायता उमस बहुत कुछ लाभ होने की आशा है। अंगरजी के बायकाट* और हमारे बहिष्कार का अर्थ एक ही है। परंतु अंगरजी · वायकाट की उत्पत्ति का इतिहास बहुत मनोरंजक और शिक्षादायक हैं। मन १८८१ ई० में कायर्लेण्ड दश में इस शब्द की उत्पत्ति हुई । उम ममय आयलैंण्ड के किसानों का अंगग्ज जमीदारों के द्वाग बहन कष्ट सहना पड़ता था। अंगरज-ज़मीदार अपने प्रायग्शि-किसानों की जमीन चाह जब छीन लिया करते थे । पालिमन्ट में इस विषय की अनेक बार चर्चा होने पर भी कुछ लाभ न हुआ । तब आयलैण्ड के सब लोगों ने यह निश्चय किया कि, जब Basevit - Toloni otit from all wia! :D other interesuar,
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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