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स्वदेशी-आन्दोलन और बायकाट
अर्थात भारतवर्ष की उन्नति का एकमात्र उपाय ।
देशोपालम्भ । ( एक मित्र द्वारा रचित)
[१] हे भाग्यहीन ! हत : भारतवर्षदेश !
हे हे विनष्ट-धन-धान्य-समृद्धि-लेश ! प्राचीन-वैभव-विहीन ! मलीन-वेश !
हा हा ! कहां तव गई गरिमा विशेष ?
जो थे प्रणम्य पहले तुम कीर्तिमान,
विज्ञान और बल-विक्रम के निधान ! सम्पत्ति, शक्ति निज ग्वोकर आज सारी,
हा हा हुए तुम वही सहसा भिखारी॥
स्वाधीनता-सदृश वस्तु न और प्यारी,
हे दीन-देश ! वह भी न रही तुम्हारी ! व्यापार एक तुमको कर खूब आया,
मालस्य-मोह-मद-मत्सर-मन्त्र भाया।।