________________
जैनधर्मपर व्याख्यान.
है, बुराई भलाईका ओर नम्रताका हमारा ज्ञान हमको माक्षमें जानेसे रोकता है, इसकी प्राप्तिकलिये नग्नताका ख्याल दिलसे निकाल देना चाहिये । जननिग्रंथ बुराई और भलाईके ज्ञानको भूल जाते हैं फिर उनको अपनी नग्नता ढकनकेलिये वस्त्रोंकी क्या जरूरत है और वे आदम और युहन्नाके समान आत्मारूपी बाटिका ( बाग ) में सुख भोगते हुये नग्न और पवित्र क्यों नहीं रहें और बुराई भलाई और अपनी ननताकं ज्ञानके कारण वे अविनाशी मावसे रहित होकर इस संसारमें क्यों पतित हो हिन्द शास्खोंमे भी नग्नताका कम गौरव नहीं रक्खा है। शंक आचार्य जिसके परीक्षितकी सभा मानेसे उसके पिता और पितामह ( दादा) वगैरह सहस्रों ऋषि खड़े हो गये थे दिगंबर या, शिव दिगम्बर था दत्तात्रेय दिगम्बर था !
दत्तात्रेयो महायोगी योगीशश्चामरः प्रभुः । मुनिदिगम्बरो वाला मायामुको यदापरः ।।
। दत्तात्रयमन्त्रनाम पृष्ठ २१४! अर्थ-महायोगी, योगीश, अमर. प्रभु मुनि दिगम्बर, बील. मायामक्त, यदापर य दत्तात्रेयके नाम हैं।
अवधूतोंका फिरका दिगम्बर अथवा जातरूप धारा होता है । ऋषभ जो विष्णुक २४ अवताराम से एक थे और जनमतक, स्थापन करने वाले थे वह भी दिगम्बर थे
एवमनुशास्यात्मजान स्वयमनुशिष्टानपिलोकानझायनार्थ महानुभावः परममुहद भगवान पभापदेशउपदामालानामुपग्तकर्मणां महामनीनां मनिज्ञानवैराग्यलक्षणं पारमहस्पधर्मम पशिक्षमाणः स्वतनयमतज्यष्टं परमभागवतं भगव जनपरायणं भरतं धरणिपालनायामिपिन्य स्वयंमवनरबोर्वरितशरमात्रपरिग्रह उन्मन इव गगनपरिधानः प्रकार्णकेगात्मन्वारोपि ताहवनीयो ब्रह्मावतीतमवज्ञान ॥
( भागवतस्कंध ५ अ० ५ श्लोक २८) अर्थ-वड़प्रभाववाले, सबंक प्यारे, सर्वकम्माँस विरक्त और बड़ेशीलवंत भगवान ऋषभ देव इसप्रकार अपनपुत्रों को शिक्षादकर उनमें सबसे बड़े परमभाग्यवान, भगवजनोंकी सेवा करनेवाले श्रीभरतजीको पृथ्वीकी रक्षाकेलिये गजतिलक देकर आप महामनियोंको भक्ति, ज्ञान बार वैराग्यके लक्षणांवाले परमहंसाक धर्मकी शिक्षा करते हय. संसार केवल शरीरमात्रको धार उन्मत्तकी तरह जिनक सब केश बिखर रहे हैं ऐसे दिगम्बर हो गये और अपने कर्तव्य ( फर्ज ) को विचार कर ब्रह्मावर्त अर्थात् बितूरदेशसे सन्यास लेकर चले गये।
देखा भागवत