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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. जेनसाधुका हाल बतानेको मेरे पास इतना समय होता कि मैं जैनसाधुके चारित्रका अभिप्राय और उसका आशय बतला सक्ता, यहां में केवल एक बातको बताकर संतुष्ट होता हूं कि निग्रंथ नग्न क्यों रहते हैं और जैनी लोग नग्न मूर्तियोंको क्यों पूजते हैं। जनसाधु इस कारण नग्न रहते हैं कि जनमत कहता है कि जब तक किसी पुरुषमे जिनीसाधु नम क्यों नग्नताका ऐसा ही विचार बना रहता है जैसा कि हममें, उस समयतक रहते है और क्यों मनी नंगी मतियाँको उसको मोक्षकी प्राप्ति नहीं हो सक्ती, जनमत के अनुसार कोई पूजते है? पुरुष मोक्ष नहीं पा सक्ता जबतक उसको यह ख्याल रहता है कि मैं नंगा हूं, वह इस संसाररूपी समुद्रस केवल उसी समय पार होसक्ता है जब वह इस बातको भूल जाय कि मैं नंगा हूं । नंगा होनेका हमारा ख्याल ही हमको स्वर्ग और मोक्ष में जानेसे रोकता है, जब हम अपने दिलसे इस ख्यालको दूर करदेंगे तब ही हम निर्वाण पा सकेंगे। जनमतमें भाव और ज्ञानका बड़ा माहात्म्य रक्खा है, इन्हींपर जैनीकी मुक्ति निर्भर है । एक मनुष्यने अपनी माताको उड़द [ माघ ] की दाल धोते हुये देखा, उसने विचार किया कि उसकी आत्मा भी कम्मसि इसी प्रकार आच्छादित [ ढंकी हुई है जैसे कि उड़द की दाल छिलकसे ढंकी हुई है। उसने इस आवरण ( परदे) को हटाने के लिये ध्यान किया और 'तषमाषभिन्न 'तृपनापभिन्न' इस प्रकार बारम्बार कहता रहा अर्थात् उसकी आत्मा माषकी दालक तल्प और उसके कर्म नाषके छिलकेके समान भिन्न २ है, इस तरह ध्यान करते २ वह कंवली सर्वज्ञ] बन गया और मोनको प्राप्त होगया। इससे आप देख मक्त है कि जनमतमें भावों [ स्यालातों ] का बड़ा दरजा रहा है, भाव हमारी मुकिका कारण है और भाव ही हमका नरक गतिमें ले जाते हैं। जबतक मनुष्य का यह ख्याल रहता है और वह जानना है कि मैं नंगा हूं और लोग मुझको बुरा भला कहेंगे उस समयतक वह मोक्षको नहीं पा सता, उसको निर्वाण पानेके लिये ये ख्याल दिलस हटा देने चाहिय । आदम और युहन्नाके स्वर्गस निकलनेकी प्रसिद्ध कथा भी यही बात जाहिर करता है, आदम और युहन्ना दोनों नग्न और पवित्र थे, वे अदनके बागमें पूर्ण सुख भोगते थे और उनका इस बातका कुछ ज्ञान नहीं था कि भलाई या बुराई क्या चीज है । संतानका जो उनका बैरी था यह इच्छा हुई की उनके सुखको नष्ट करें, यह विचारकर उसने उनको बुराई और भलाईके ज्ञानरूपी वृक्षका फल चखादिया. जिससे उनको तुरन्त अपनी नम्रता मालूम होने लगी, इसका परिणाम यह हुआ कि वे पतित किये गये और स्वर्गसे निकाले गये, बुराई और भलाईके ज्ञानने ही और इस नग्नता के ख्यालन ही उनको अदनसे निकाला । जैनियोंका भी इसी प्रकार विश्वास
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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