________________
जैनधर्मपर व्याख्यान.
भर्तृहरि अपने वैराग्यशतकमें शिव अर्थात् महादेवसे प्रार्थना करता है:
एकाकी निस्पृहः शान्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः।।
कदा शम्भो भविष्यामि कर्मनिर्मूलने क्षमः ॥ ७२ ॥ अर्थ-हे शम्भू ! वह दिन कब आवेगा जब मैं अकेला ( अलग ) होकर, इच्छारहित और शान्तहोकर, अपने हाथोंको बरतनकी जगह काममें लाकर और दिगम्बर बनकर कर्मोंके नागकरनको समर्थ हूंगा? ___ नग्नता उन पुरुषांके लिये नग्नता नहीं है जिन्होंने नंगा होनेका ख्याल दिलसे भुला दिया है. हिन्दूपुस्तकोंमें यह लिखाहुआ भी हमको मिलता है कि एक सरोवर (तलाव) में कल नियां नंगी नान कर रही थी, शुकआचार्य पाससे निकल गये परंतु उन स्त्रियोंने अपनी नानताको नहीं छिपाया, जब व्यास उस मार्गले निकले तो उन्होंने तुरंत अपनी नग्नता हिमालयी. व्यासने उन स्त्रियों ने पंछा कि इसका क्या कारण है? उन्होंने उत्तर दिया कि व्यास नग्नताको देखता और जानता है परन्तु शक नहीं, और व्यासके नेत्र उनकी नग्नतापा पड़ने है परन्तु शकके नहीं और व्याम अपने चारों ओरकी वस्तु देखता है पिगैति इसके शक नहीं देखता। हमको हिन्दूपुस्तकोंमें यह भी मिलता है कि जब हनुमान दृत बाकर लंकामें गया तो उसने रावण के महल में कुछ स्त्रियां गत्रिक समय नग्न मोती हुई देखी. उसने अपने दिलम विचार किया कि मुझसे बड़ा पाप हुयः परन्तु फिर मोचने पर उसने ब्याल किया कि नहीं, मैं निरपराध है क्योंकि मैं पवित्र है और नंगा होना या न होना मरेलिये बराबर है। वे मनुष्य अजीब हैं जिनके नेत्र साधओंकी नग्नता पर पड़ते हैं और जो उनमें इसलिये दोष लगाते हैं कि वे वस्त्र धारण नहीं करते और उन्होंने गई भलाईका बाल दिलसे निकाल दिया है। हमारे नेत्र मायांके गणां पर पड़ने चाहिये, हमको उनकी नग्नतासे क्या प्रयोजन है ?
महाभयो ! क्या आपको मालम है कि महागना रणजीततिहके महामंत्रीने उसपुरुषको क्या उत्तर दिया था जिसने उससे पूछा था कि क्या तुम्हारा राजा काना है ?
उसने यह जबाब दिया था कि मुझको यहवात मालूम नहीं है । दूसरेने पूछा कि इसका क्या कारण है तब मन्त्राने उत्तर दिया कि महाराजाके मुखको देखनेका कौन साहस ( जरअत ) कर सक्ता है, सब लोगोंकी आखें उनके चरणों में पड़ती हैं फिर कोई किसप्रकार जान सका हगि गजा ए नेत्र है ! हमारे नेत्र भी सदा साधुओंके गणोंपर पड़ते हैं, हमको उनके शरीरसे या प्रयोजन है! इससे यह बात भी जाहिर होती है कि हम नग्नमूर्तियोंको क्यों पूजते हैं। क्योंकि मूर्तियां उन सहात्माओंकी हैं जो नग्न थे, जब हम मन्दिरमें जाते हैं तो उन मूर्तियोंके शरीरको कभी नहीं देखते बल्कि उनके