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________________ 306 Jaina Grantha Bhandars in Rajasthan. सुख संपति दारिद्र दु.ख, होत प्रचीतो मानि । दीन मान की भावी, परे न कबहूँ जानि ॥३१५।। चौपई:-ग्रंट परे ते सिधि संचरे, केहरि परति पाई अनुसरै । कूमतिहि मित्र लाभ पर हरी, मती प्रकाल चक्र वाहिरो ॥३१६॥ दोहा:-देखी सूनी सो मैं कही, मंत्री जो मतिमान । शानि जाति जौन सबको, मागे की जान ॥३१७।। मतो हथियारु हाथ ले जोर, साहू शुभकरन करत करु मोर । मारग हान हर म्रन मानियो, दिल कुसाद हरख न वामियो ॥३१८।। कवि सोधे संवत सर साठ, इहि मत चले परे नहिं घाट । इहि मति अन्नु पेट भरि खाई, ऐही चीर न को यह राई ॥३१६।। बनिक प्रिया में सुम असुभ, सबही गयो बताई । जिहि जैसी नीकी लगे, तसी कोजे जाई ॥३२०॥ सत्रह से सत्रह वरस संवत सर के नाम । कवि करता सुखदेव कहि लेखक माया राम ।।३२१।। इति वनिकप्रिया सपून समाप्ता । भादो सुदि १२ सुक्रवासरे सवत १८५५ मुकामु छिरारि, लिवत लाला उदेत सीध राजमान छिरारी वाके जो वाचे ताको राम राम । लिखी जथाकत देखक, कहि उदेत प्रधाम, जो वा, श्रवन नि सुनो, ताको मोर प्रनाम । 42. DOHA SATAKA: It is also called •UPDESA DOHA' composed by Hemraja II, who was born in Sangāner (Jaipur) in the year 1668 A. D. It deals with various topics of gideral interest. It is'written in a very simple and plain language with on literary flourish The manuscript is in the Grantha Bhandar of Jain temple Tholia. Jaipur in a Gutaka number 636. There are 101 Dohas in the work. Some of the verses are given below: दिघ्य दृिष्टि परकासि जिहि, जान्यो जगत अमेस । निसप्रेही निरदुद निति, बदो त्रिविध गनेस ॥१॥ कुपथ उथपि थापत सुपथ, निसप्रं ही निरगंथ । ऐसे गुरु दिनकर सरिस, प्रगट करत सिंवपंथ ।।२।। गनपति हृदय बिलासिनी, पार न लहै सुरेस ।' सारद पद नमि के कहो, दोहा हितोपदेस ॥३॥
SR No.011017
Book TitleJaina Granth Bhandars in Rajasthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherDigambar Jain Atishay Kshetra Mandir
Publication Year1967
Total Pages394
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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