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Jaina Grantha Bhandara la Rajasthan
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रड-पढहि जे के सुद्ध माएहि ।
जे सिक्खहि सुद्ध लिखाव, सुद्ध घ्यानि जे सुणहि मनु धरि । ते उत्तिम नरनारि प्रमर सुक्ख भोग वहि बहुरि ।। यह संतोषह जयतिलय जंपिउ वल्हि संभाइ । मंगलु चौविह संघ कह करइ वीरु जिरणराइ ॥१२३॥
॥ इति संतोषजयतिलकु समाप्ता छ।।
16. CETAN PUDGAL DHAMALA :
This is an another work written by Vūcarājā, It is in old Hindi and describes the relation between Cetan living being) and Pdgal (non-living being). The work also deals with various subjects such as merits of noble persons, benefits of good company, difficulties in worldly life etc. It has 136 verses of various metres. The work has been recently traced in the Šāstra Bhandār of Bundi Some of the excellent verses of the work are as follows:
मला भला सहु को कहै, मरमु न जागी कोइ । काया खोई मीत रे, मला न किस ही होय ।। ७१।। +
+ जिम तरु प्रापरणु धूपम हि, प्रवरह छांह कराइ । निउ इसु काया संग ते, जीयडा मोखिहि जाए ।।७३।।
फुलु मरइ परमलु जीवइ तिसु जाण सहु कोय । हस चलइ काया रहइ, किवरु बराबरि होइ ।।३।।
जिय विरणु पुदगल ना रहै, कहिया प्रादि अनादि । छह ग्वड मागे चक्कवै, काया के परमादि ॥६६।।
यहु सजमु प्रसियर भणी, तिस ऊपरि पगु देहि । रे जिय मूढ न जाणहा, इव बछु किव साह्महे हैं ॥१२४।।
रे चेतन तू तावला जा जड तुम्ह संगि होय । जे मदु भाजनि गूजरी वीक कह सबु कौए ।।१०।।