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Material for Research
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चउरामी मागलइ सइ जु पंद्रह सवछर (१५८४) । सुकल परूप प्रष्टमी मास कातिग गुरु वासरु । हृदय उपनी बुद्धि नाम गुरु को लीन्हउ । सारद पणइ षसाइ कवित्त सपूरण कीन्हउ ।। नाल्हिग वसि नाथू सुतनु अगरवाल कुल प्रगट रवि ।
बावनि वसुधा विस्तरी कवि ककरण छोहल कवि ॥५३।। 15. SANTOSA JAYA TILAKA :
The Santosa Jaya Tilak was composed by the famous Rajasthani poct Vũcarēja. It describes the devices of dissatisfaction and has been stated that satisfaction is the only source of happiness. It is in the form of a drama in which victory of satisfaction on greediness is shown. The poet completed the work in the year 1524 A.D. at Hisar. There are 123 stanzas of various metres. The manuscript was preserved in the Grantha Bhandār of Nagadi temple, Bündi.
Influence of Greediness
लोम विकटु करि कपटु अमिट रोमाइणु घडियउ । लपटि दवटि नटि कुघटि झपटि झटि इव जगु भडियउ । धरणि खडि ब्रह्माडि, गगनि पयालिहि धावइ । मीन कूरग मतंग झिंग मातग सतावद। जो इद मुरिणद फरिणद सुरचद सूर समुह अड़इ । उह लडइ मुडइ खिरणु गडबडइ, खिरणु सुउठ्ठि संमुह जुडइ। जब मुलौमि इतउ वलु कोयउ, अधिक कष्टु तिन्ह जीयह दीयउ । तब निणउ नमतु लै चिति गज्जिउ, राउ सतोषु इनह परि सज्जिउ ।११४॥
The end of the work in which the date of completion is given is as follows :
जब जित्त दुसह लोहु कोयउ तब चित्त मझि पानदे । हूव निकट रजो गहगहियउ राउ संतोषु ।। ११६।। मतोषह जय तिलउ जपिउ हिमार नयर मझार । जे सुणहि भविय इक्क मनि, ते पावहि वछिय मुक्ख ॥१२०॥ मवति पनरइ इक्याण मद्दवि सिय पक्सि पंचमी दिवसे । सुक्कवारि स्वाति वृखे, जेउ तह जाणि वमना मेण ॥१२१॥