________________
४३९
min
दशम अध्याय एवं लुटेरे भी हो सकते हैं और इस सन्देह का शिकार निर्दोष व्यक्ति भी बन जाता है। अस्तु,वेश्यालय राष्ट्र की ताक़त को,उन्नति को कमजोर बनाने वाला है। मानव की ईमानदारी को समाप्त करने वाला है। विकास के पथ पर क़दम रखने वाले साधक को इससे सदा बचकर रहना चाहिए । अपनी वासना को केन्द्रित करके रखना चाहिए। उसे मर्यादा से, सीमा से, वाहर नहीं बहने देना चाहिए। इसी में व्यक्ति का, समाज का, परिवार का, राष्ट्र का एवं विश्व का हित रहा हा
..... . ५. शिकार .. :: किसी भी पशु-पक्षी को अपने आमोद-प्रमोद, दिलबहलाव, क्रीड़ा एवं आहार के लिए तीर, बन्दूक या तलवार से मारना शिकार कहलाता है। कुछ लोग इसे मन बहलाव का, शक्ति बढ़ाने का या साहस एवं शौर्य दिखाने का साधन मानते हैं। परन्तु यह सब धोखा देने को बातें हैं । वस्तुतः शिकार खेलना नृशंसता का कार्य है । मनबहलाव ऐसा होना चाहिए जिससे दूसरे प्राणियों को कष्ट नहीं पहुंचे।
मनुष्य के क्षणिक आमोद-प्रमोद से दूसरे प्राणी का अमूल्य जीवन . वर्वाद होता हो तो वह मनोविनोद उसके लिए. भयावह है। शक्ति
एवं शौर्य का प्रदर्शन उसके सामने करना चाहिए, जो वराबर की ताक़त रखता है। जो शक्ति में कमजोर है. और शस्त्र-रहित है, उस
पर शस्त्र चलाने में कोई बहादुरी नहीं, बल्कि यह तो सबसे बड़ी ...... कायरता है। यह इन्सानियत की वृत्ति नहीं, प्रत्युत राक्षसी वृत्ति है,
शैतानियत की भावना है । इसके लिए मनुष्य को अपने आप में देखना-विचारना चाहिए कि यदि कोई ताक़तवर व्यक्ति उसके साथ