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________________ अठाहरवां अध्याय rammar~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~ उष्णवेदना, चतुर्थ में उष्णशीत, पाँचवें में शीतउष्ण है।अर्थात् यहां शैत्य. का प्राधान्य और उष्णता का स्वाल्प्य होता है। छठे में शीत और . सातवें में अधिक शीत वेदना होती है। यह उष्णता और शीतता की वेदना इतनी सख्त होती कि इस वेदना को भोगने वाले नारकीय यदि . मनुष्यलोक में की सख्त गरमी या सगत सरदी आ जाएं तो उन्हें बड़े आराम से नींद आ सकती है। : : नरकों में क्षेत्रस्वभाव के कारण सरदी, गरमी का भयंकर दुःख . तो है ही, पर वहां पर भूखप्यास का दुःख और भी भयंकर है। भूख का दुःख तो इतना अधिक है कि अग्नि की तरह सब कुछ भक्षण कर लेने पर भी शान्ति नहीं होती, वल्कि और अधिक भूख की ज्वाला 'भड़क उठती है। प्यास का कष्ट इतना ज्यादा है कि कितना भी जल .. क्यों न पी लिया जाए, पर उस से तृप्ति नहीं होने पाती। इस दुःख के .. उपरान्त बड़ा भारी दुःख तो उनको आपस के वैर और मारपीट .: से होता है। जैसे कौया और उल्लू तथा सांप और नेवला जन्म से शत्रु । .... हैं, वैसे ही नारकीय जीव स्वभाव से शत्रु हैं। इसलिए वे एक दूसरे को देख कर कुत्तों की तरह आपस में लड़ते हैं, काटते हैं और गुस्से से - जलते हैं। ... - क्षेत्रस्वभाव-जन्य वेदना और परस्परजनित वेदना के अलावा, .. एक और वेदना नारकियों को सहन करनी पड़ती है। वह है. . परंमाधार्मिक देवों द्वारा दी गई वेदना। परमाधार्मिक एक प्रकार : के असुरदेव होते हैं, जो बहुत क्रूरस्वभाव वाले होते हैं, और पापमय .. प्रवृत्तियों में अधिकाधिक रस लेते हैं। इन की अम्ब, अम्बरीष, .. श्याम, शवल आदि पन्द्रह जातियां हैं । ये स्वभाव से ही ऐसे निन्द्य . और कुतूहलप्रिय होते है कि उन्हें दूसरों के सताने में ही ग्रानंद मिलता है। इसलिए नारकियों को अनेक प्रकार के प्रहारों से परिपीड़ित करते रहते हैं। उन्हें आपस में कुत्तों, मैंसों और मल्लों की है ! जसे कीया और बा अापस के वैर रख के
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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