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________________ ' =९९ प्रश्नों के उत्तर न्यून होती जाती है | ये नरक ग्रापस में साथ मिले हुए नहीं हैं । इनमें एक दूसरे के बीच में बहुत बड़ा अन्तर है । इस अन्तर में वनोदधि, घनवात, तनुवात औौर श्राकाश क्रमशः नीचे-नीचे हैं। अर्थात् पहली नरक-मि के नीचे घनोदवि है, घनोदवि के नीचे घनवात, घनवात के नीचे तनुवात श्रीर तनुवात के नीचे श्राकाश है । आकाश के बाद दूसरी नरक - भूमि है । इस भूमि और तीसरी भूमि के - बीच भी घनोदधि आदि का वही कम है । इसी तरह सातवीं भूमि • तक सब भूमियों के नीचे इसी क्रम से घनोदधि आदि विद्यमान हैं । वैसे ग्राकाश सर्वव्यापक है, किन्तु वनोदधि आदि का क्रम समझाने के लिए यह बात कही गई है । • : पहली नरक-भूमि कृष्णवर्ण वाले रत्नों से व्याप्त होने से - रत्नप्रभा कहलाती है । वरछे, भाले यादि से भी अधिक तीक्ष्ण शर्कराओं-कंकरों की बहुतायत होने से दूसरे नरक को शर्करा प्रभा कहा जाता है। भडभुजे की भट्ठ के रेत से भी अधिक उष्ण बालुका- रेत की मुख्यता के कारण तीसरी भूमि वालुकाप्रभा कही गई है । पंक (कीचड़ ) की अधिकता को लेकर चतुर्थ नरक का नाम पंकप्रभा रखा गया है। राई, मिर्च के धूएं से भी अधिक खारे धूम-धूएं की अधिकता से पांचवां नरक धूमप्रभा, अन्धेरे की विशेषता से छठा नरक तम: प्रभा, और महान तम, घन अन्धकार की प्रचुरता. से सातवाँ नरक महातम: प्रभा कहलाता है । ★ वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, शब्द और संस्थान यादि अनेक प्रकार के पौद्गलिक परिणाम सातों नरकों में उत्तरोत्तर अधिक अधिक अशुभ हैं । सातों नरकों के निवासी नारकियों के शरीर उत्तरोत्तर अधिक अविक अशुभ वर्ग, गन्ध, रस, स्पर्श, शब्द और संस्थान वाले तथा अधिक अधिक प्रशुचि और बीभत्स हैं। सातों नरकों में वेदना उत्तरोत्तर अधिक तीव्र होती चली जाती है । पहले तीन नरकों में
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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