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________________ चतुर्दश अध्याय जिण बांछयो एहं जीवणो, तिण बांछ्यो आरम्भ ॥ -- भिक्षु यश- रसायरण, पृष्ठ ६६ अर्थात् -- असंयति का जीवन प्रारम्भ ( हिंसा ) सहित होता है, इसलिए इसके जीवन की कामना करना प्रारम्भ का अनुमोदन करना है । ८०६ C इस प्रकार के अनेक उदाहरण उपस्थित किए जा सकते हैं, विशेष जिज्ञासुत्रों को तेरह - पन्थ की मूल पुस्तकें देख लेनी चाहिए । प्रश्न - औषधालय, विद्यालय, अनाथालय, शरणार्थी कैम्प आदि की अन्न, वस्त्र, मकान, औषध आदि द्वारा शुभ भावना से सहायता करने वाले को पुण्य होता है या पाप ? उत्तर--स्थानकवासी परम्परा के विश्वासानुसार पुण्य होता है, किन्तु तेरह - पन्थ इन कामों में पाप मानता हैं । कुछ समय से तेरह - पन्थी इन कामों में लौकिक पुण्य भी कहने लगे हैं, पर लौकिक . पुण्य शब्द भी उनके यहां पाप का ही बोधक है । जन साधारण को भुलावे में डालने के लिए लौकिक पुण्य शब्द का ग्राविष्कार किया गया है । जैन-शास्त्रों तथा टीका-ग्रन्थों में कहीं लौकिक पुण्य शब्द नहीं मिलता है । -- " प्रश्न -- दया से प्रेरित हो कर आग लगे मकान के द्वार खोल कर मनुष्य, गाय आदि प्राणियों की रक्षा करना, 6 ऊपर से गिरते या मोटर को झपट में आते हुए बालक को बचा लेना और गौ-रक्षा के लिए कसाई को उपदेश देना पुण्य है या पाप ?
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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