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________________ ८१० · प्रश्नों के उत्तर .. उत्तर--स्थानकवासी परम्परा का विश्वास है कि दया से प्रेरित होकर विपत्तिग्रस्त की रक्षा करना, धर्म है, पुण्य है, किन्तु तेरह-पन्य कहता है कि उक्त कार्य करने वाले को पाप होता है । उस की दृष्टि में यह सव सांसारिक कार्य हैं, और सांसारिक कार्य पापमय होते हैं। उस का विश्वास है- संसार तणा उपकार किया में, धर्म कहे ते मढ़ गंवार--" अर्थात् सांसारिक उपकार को धर्म कहने वाले मूढ़ और गँवार होते हैं। '... प्रश्न--पितृ-भक्ति से प्रेरित हो कर पुत्र के द्वारा पिता के हाथ पैर दवा देने और प्रणाम करने से पुण्य होता है या पाप ? ... ... .. .. उत्तर--स्थानकवासी परम्परा इस में पुण्योत्पादन मानती है, किन्तु तेरह-पन्य इस में पाप बतलाता है। उसका विश्वास है -...कि पिता असंयति है, असाधु है, कुपात्र है, अतः उसकी भौतिक साधनों द्वारा सेवा करना या उसको नमस्कार करना पाप है। . प्रश्न--अहिंसा का अर्थ केवल न मारना है या दया. भाव से प्रेरित होकर मरते जीव को बचा लेना भी होता . उत्तर-स्थानकवासी परम्परा कहती है कि अहिंसा का . . :निवृत्ति रूप अर्थ किसी जीव की हिंसा न करना है और प्रवृत्ति रूप . : अर्थ मरते जीव की रक्षा करना होता है। इस के विश्वासानुसार .. 'जीव-रक्षा की भावना अहिंसा है,हिंसा नहीं है, किन्तु तेरहपन्थ में न ... मारना ही अहिंसा है । इस के यहां मरते प्राणी की रक्षा करना..." 'हिंसा है। अहिंसा का प्रवृत्ति रूप अर्थ इन को मान्य नहीं है। . 'जीवरो जीवणो वंछे ते राग, मरणी वंछे ते द्वेप और .तिरणो वंछे तो धर्म
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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