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________________ STR प्रश्नों के उत्तर 1. गोली चूरण दे रोग गमावे ॥ " - अनुकम्पा ढ़ाल १, कड़ी २४ अर्थात् कुष्ठादिक कठिन रोग से पीड़ित रोगियों को सुनकर कोई वैद्य दया भाव से उन को गोली चूर्ण दे कर रोग - रहित कर दे तो यह दया पापकारी दया है । ८०८ "सांधु के अतिरिक्त सव प्राणी असंयति होते हैं । असंयति जीवों के जीने-मरने को वाँछा करना एकान्त पाप है, उन के सुख, जीने आदि की कामना करने से असंयममय जीवन की अनुमोदना लगती है तथा विपय-भोगों में लगी हुई इन्द्रियों को उत्तेजन मिलता है । इस प्रकार और अधिक पापोपार्जन करा कर उन जीवों की आत्मिक दुर्गति के कारण होता है । "श्रीमदाचार्य भीषण जी के "विचार- रत्न " -- पृष्ठ ५३” गृहस्थ रे पग हेठे, जीव आवे तो, : साधु ने बताणो कठे नहीं चाल्यो । भारी करमा लोका ने भ्रष्ट करण ने, प्रोपिण घोचो कुगुरां घाल्यो ।” - अनुकम्पा ढ़ाल ८, कड़ी ८३ अर्थात् -- गृहस्थ के पैर के नीचे कोई छोटा जीव दव कर मरता हो तो साधु" को बताना नहीं चाहिए । जो बताते हैं वे कुगुरु हैं । :, . जो आरम्भ सहित जीवणी असंजति रो अम्भ |
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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