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________________ '. चतुर्दश अध्याय ७२५ ग्रहण किया जा सकता है । सर्वथा निर्विकार माखन के ग्रहण कर लेने में कोई दोष नहीं होता है। .. ... ......... . xश्री वृहत्कल्प सूत्र के उद्देशक ५. सूत्र ५१ में लिखा है कि साधु रोगादि के कारण माखन को चतुर्थ प्रहर में अपने काम में ला सकता है । इस से स्पष्ट है कि यदि माखन. दो घड़ी के अनन्त र अग्राह्य, अभक्ष्य या जीवों का पिण्ड होता तो सूत्रकार उस को ... सेवन करने की कभी आज्ञा प्रदान न करते । शास्त्रीय आज्ञा : स्पष्टः । होने पर भी माखन को अभक्ष्य या जीवों का पिण्ड बतलाना, शास्त्रीय . अनभिज्ञता प्रकट करना है। यदि माखन को कुछ क्षणों के लिए सर्वथा अभक्ष्य मानः लिया जाएगा, तब तो माखन से चुपड़ी. रोटी, या वह शाक जिस में माखन डाला गया है, उस का सेवन नहीं .. किया जा सकता । तथा घी का भी सर्वथा परित्याग करना पड़ेगा . क्योंकि वह भी तो माखन से ही निकाला जाता है। माखन के . .. विना घृत की प्राप्ति नितान्त असंभव है। फिर घृत में भी प्रायः .. माखन का अंश सदा : बना रहता है । वास्तव में देखा जाए तो . www ४ नो कप्पइ निरगंथाण वा निग्गंथीण वा पारियासिएणं तेल्लेण वा. . घएणवा नव णिएण वा वसाए वा गायाई अभंगेत्तए वा नन्नत्थ ओंगाडे हिं. .. रोगायंकेहिं । ............. ... ... ... ................. . अर्थात् साधु, साध्वी को प्रथम प्रहर में ग्रहण किया हुआ तेल, घत. मक्खन, औपधि योग्य सुगन्धित द्रव्य, चौथे प्रहर में अपने शरीर को लगाना, बारंबार लगाना, मसलना कल्पता नहीं है परन्तु उक्त वस्तुएं यदि चतुर्थ प्रहर में प्राप्त न हो सके तो रोगादि के कारण चतुर्थ. प्रहर में भी. इन का प्रयोग किया जा सकता है। --आचार्य श्री अमोलक ऋषि जी महाराज .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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