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________________ ७२४ प्रश्नों के उत्तर की सब वस्तुओं का उपयोग करना छोड़ दिया जाए तो क्या ऐसे जीवन का निर्वाह हो सकता है ? उत्तर स्पष्ट है, कदापि नहीं । 2 : एक बात समझ में नहीं प्राती कि यदि किसी के घर वालक ने जन्म ले लिया तो इस से घर वालों को क्या लग जाता है? श्रीर निश्चित दिनों के व्यतीत हो जाने पर उन पर से क्या उतर जाता है ? सूतक का अर्थ है - जन्म का प्रशोच । जन्म का अशीच जन्म देने वाली माता के होगा या जन्म लेने वाले वालक को होगा । घर वालों का उस से क्या सम्बन्ध होता है ? और फिर वह ग्रशीच भी तो सदा चिपटा नहीं रहता । उसे जलादि साधनों द्वारा साफ कर दिया जाता है, फिर सूतक रहा कहां ? वस्तुतः सूतक की मान्यता एक ऊल-जलूल मान्यता है, उसका कोई आधार नहीं है । इसीलिए स्थानकवासी परम्परा इस अन्ध और प्रशास्त्रीय मान्यता में कोई विश्वास नहीं रखती । 4: ग्राठवाँ अन्तर है - मक्खन को माँस के समान समझने का । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा मक्खन और मांस को एक समान मानती है और कहती है कि जिस प्रकार मांस अभक्ष्य है उसी प्रकार दो घड़ी के बाद का मक्खन भी अभक्ष्य है, मांस की तरह जीवों का पिण्ड है, समूह है। इसीलिए यह परम्परां दो घड़ी के बाद के मक्खन को भी ग्रहण करने का विरोध करती है । किन्तु स्थानकवासी परम्परा ऐसा विश्वास नहीं रखती । इस का विश्वास है कि माखन का जब वर्ण, रस, गंध और स्पर्श बदल जाता है, किसी विकार के कारण अपना स्वाभाविक रस खो कर किसी अन्य रस को प्राप्त कर लेता है तब वह माखन अग्राह्य होता है । तब उस का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके विपरीत यदि उसका वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श ठीकठाक है, उस में कोई विकार नहीं आने पाया, तब उसे किसी भी समय 1 :
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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