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________________ प्रश्नों के उनरं श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा को "दो घड़ी के अनन्तर ही माखन को .. अभक्ष्य तथा जीवों का पिण्ड स्वरूप मान लेने की" मान्यता सर्वथा अशास्त्रीय तथा असंगत प्रमाणित होती है। . ..... ... नौवां अन्तर है-दही को गरम करके खाना। श्वेताम्बर . मूर्तिपूजक परम्परा का विश्वास है कि दही का उपयोग नहीं करना . . चाहिए, यदि करना ही हो तो उसे गरम करके करना चाहिए। इसी प्रकार इस परम्परा का यह भी कहना है कि तीन दिन से ... अधिक समय के सभी प्राचार अग्राह्य हैं, अभक्ष्य हैं, अतः उन का . भी सेवन नहीं करना चाहिए, किन्तु स्थानकवासी परम्परा इन। सभी बातों में कोई विश्वास नहीं रखती । इस परम्परा का कहना - है कि दही हो या प्राचार, जब तक उस का वर्ण, रस, गन्ध और . स्पर्श दूषित नहीं होता, उस में किसी प्रकार का कोई विकार पैदा नहीं होता तब तक उसका सेवन किया जा सकता है, उसके सेवन । में कोई दोष नहीं है। हाँ; यदि ये पदार्थ दूषित हो जाएं, इन में . विकार पैदा हो जाए तो इन का सेवन नहीं करना चाहिए। .. दसवां अन्तर है-वर्षा पड़ते समय भिक्षा को जाना । श्वेताम्बर मूर्तिपूजक साधु मंद वर्षा पड़ रही हो तो भी भोजन के लिए गृहस्थों के घरों में चले जाते हैं, किन्तु स्थानकवासी मुनिराज वर्षा . की एक बून्द भी पड़ रही हो तब भी भिक्षा को नहीं जाते। वर्षा के सर्वथा बन्द हो जाने पर ही स्थानकवासी साधु मुनिराज भिक्षा ... के लिए जाते हैं। श्वेताम्जर मूर्तिपूजक साधु, साध्वी एक दण्ड । रखते हैं जबकि स्थानकवासी साधु, साध्वियों के लिए दण्ड रखना .. आवश्यक नहीं है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक साधु, साध्वी छोटा सा : रजोहरण रखते हैं जब कि स्थानकवासी साधु, साध्वी पूर्ण परिमाण का रजोहरंण रखते हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा . . . .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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