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________________ चतुर्दश अध्याय को उस वस्त्र का पता चल गया । इस पर उन्होंने उस वस्त्र को लोटा देने की शिवभूति को ग्राज्ञा दी, किन्तु वस्त्र लौटाने को वह तैयार नहीं हुआ । तब शिवभूति को दण्डित करने के लिए या वस्त्र पर से उसका मोह दूर करने के लिए गुरुदेव ने उस वस्त्र को फाड़ कर उसके आसन, मुखवस्त्रिका या रजोहरण के निशीथिए बना दिए । इस पर शिवभूति को क्रोध आया । उसने आवेश में ग्राकर कहा कि आज से मैं वस्त्र ही नहीं पहनता । ऐसा कह कर उसने सब वस्त्रों को त्याग दिया और दिगम्बर बन गया x 1 शिवभूति की एक वहिन थी । नाम था - उत्तरा । वह भाई के मोह में साध्वी वन गई थी । उसने शिवभूति के दिगम्बर हो जाने की बात सुनी और यह भी सुना कि दिगम्बर मुनि शिवभूति पास के उद्यान में ठहरा हुआ है तो वह उस को वंदना करने गई । भाई के दिगम्बर हो जाने से मोहवश वहिन ने उसी का अनुसरण ७८७ * a 1 xमारवाड़ी पट्टावली में ऐसे लिखा है कि वुटक नाम के एक साधु को प्राचार्यदेव ने एक क़ीमती वस्त्र दिया । बुटक ने ममत्व भाव से उस वस्त्र को पहना नहीं, उसे बांधकर रख लिया; प्रतिलेखना भा उसको छोड़ [दी | प्राचार्य महाराज ने इस प्रयतना को दूर करने के लिए उस वस्त्र को फाड़ कर मुंहपत्तियां बनाकर साधुग्रों को वांट दीं। बुटक इससे रुष्ट हो गया और उसने सब वस्त्र फैंक दिए और दिगम्बर हो कर घूमने लगा । वुटक विद्वान था, अत: उसने एक अलग सम्प्रदाय का निर्माण किया । स्त्री को मोक्ष नहीं मिलता, वस्त्र पहनने वाला साधु नहीं हो सकता श्रादि नवीन : सिद्धान्तों की रचना की और नवीन ग्रंथ तैयार कर लिए । यही सम्प्रदाय - समयान्तर में दिगम्बर सम्प्रदाय के रूप में परिवर्तित हो गई । "ऐतिहासिक नोंव" की टिप्पणी पृष्ठ ६३
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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