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________________ प्रश्नों के उत्तर .. रथवीरपुर में शिवभूति नाम का एक क्षत्रिय रहता था । उसने अपने राजा के लिए अनेक युद्ध लड़े । और उन में अपने राजा को विजयी बनाया । इसलिए राजा उसका खूब मान करता था । उत्सव यादि में उस की प्रतिष्ठा का विशेष ध्यान रखा जाता था । राजा द्वारा सम्मान पाकर वह इतना घमण्डी हो गया था कि किसी की भी परवाह नहीं करता था। एक बार शिवभूति बहुत ७०६ रात गए घर लौटा | माता को उसकी प्रतीक्षा में विशेष जागृत रहना पड़ा था । इसलिए मां ने उसे खूब फटकारा। उस के ऊट• पटांग बोलने पर ग्रन्त में, मां ने उसे घर से निकाल दिया । ग्रपमानित तथा निराश हो कर वह संसार से विरक्त हो गया और वहां से चल दिया। फिरते-फिरते किसी स्थानक ( उपाश्रय) में चला गया । वहाँ साधुयों को नमस्कार करने के अनन्तर उसने दीक्षा देने की प्रार्थना की । साधु, मुनिराजों के बिल्कुल इन्कार कर ने पर भी उसने स्वयं ही केशलोच कर डाला । उसकी दृढ़ता तथा "अत्यधिक रूचि देख कर अन्त में, उसे जैनसाधु का वेप दे दिया । इस प्रकार शिवभूति साधु बन गया । साधु-जीवन के नियमों का कठोरता और दृढ़ता से पालन करने लगा । और गुरुदेव के साथ ही विचरने लगा । " एक वार विचरते - विचरते शिवभूति का अपने गुरुदेव के साथ रथवीरपुर में आना हुआ। इन के श्रागमनवृत्तान्त को जान कर नगर- नरेश भी पूर्वस्नेह के कारण इनके सन्मान में इन के पास गए और उन्होंने भेंट में एक बहुमूल्य वस्त्र इन्हें अर्पित किया। शिवभूति ने स्नेह में आकर गुरुदेव ही उसे स्वीकार कर लिया । बात ग्राखिर " की श्राज्ञा लिए विना प्रकट हो गई । गुरुदेव
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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