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________________ - ३६९ दशम अध्याय. मनुष्य का कोमल हृदय कठोर और निर्दय बन जाता है। इसलिए मांसाहार का निषेव किया गया है। आप ही विचार करें, कि मांस किसी खेत में तो पैदा नहीं होता, वृक्षों पर नहीं लगता, प्रकाश से नहीं बरसता, वह तो चलते फिरते प्राणियों को मार कर, उनके जीवन को लूट कर उनके शरीर से प्राप्त होता है। जब आदमी के पांव में कांटा लग जाए, तो वह उसका दर्द भी सहन नहीं कर सकता, रात भर छटपटाता रहता है, तब भला मूक प्राणियों की गरदन पर छुरो चला देना उनको मुइकें बांध कर समाप्त कर देना किस प्रकार न्यायसगत हो सकता है ? जरा शांति से सोचिए, उस समय उनको कितनी भीषण वेदना होतो होगी ? : कविता को भाषा में इसी तथ्य को कितनी सुन्दरता से कथन किया गया है. " X रंग-रंग को मुर्दा कर दिया । एक कांटे ने तेरी क्या छुरी का दर्द मजलूमों को तड़पाता नहीं ? अपने क्षणिक जिह्वा के स्वाद के लिए दूसरे जीवों का मार कर लाश बना देना कितना निन्दय तथा नीच आचरण है ? जब आदमी - किसी को जीवन नहीं दे सकता, तो उसे क्या अधिकार है कि वह दूसरों का जीवन लूट ले ? मृतक को छू कर लोग अपने आप को अपवित्र समझते हैं और पवित्र होने के लिए स्रः न आदि क्रियाएं करते हैं किन्तु इससे अधिक प्राश्चर्य की बात और क्या हो सकती है कि वे जीभ की लोलुपता के शिकार हो कर मृतक के कलेवर का अपने पेट में डाल लेते हैं? कितनी अधमता है यह -? एक आचार्य ने मांस शब्द की व्युत्पत्ति बड़े हृदयस्पर्शी ढंग से .
SR No.010875
Book TitlePrashno Ke Uttar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages606
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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